Wednesday, September 28, 2011

मोदी की निगाह में है दिल्ली


लोक सभा के आम चुनाव में अभी तीन साल और बाकी हैं. लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभी से इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं. बिहार के विधान सभा चुनाव में सहयोगी जनता दल (यू) के नेता और मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने उन्हें चुनाव प्रचार से दूर रखा था. वजह थी मोदी की मुसलमान विरोधी कुप्रतिष्ठा. मोदी यह भली भांति जानते हैं कि केवल रतन टाटा, मुकेश और अनिल अंबाणी बंधु जैसे उद्योगपतियों के समर्थन प्रस्ताव से उन्हें दिल्ली की राज गद्दी नहीं मिलेगी. इसके लिए उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की तरह धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहनना होगा.

गुजरात के २००२ में हुए नरसंहार में उनकी भूमिका के कारण विश्व हिन्दु परिषद के नेतृत्त्व ने मोदी को ’हिन्दु हृदय सम्राट’ की पदवी से विभूषित किया था. उनकी प्रखर हिन्दुत्त्ववादी छवि तथा गुजरात मतदाताओं के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण ही मोदी दो दफ़ा मुख्यमंत्री चुने गए. विधान सभा चुनावों में मोदी ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति ’मियां मुशर्रफ़’ के भारत विरोधी रवैये तथा सोनिया गांधी के नेतृत्त्व में कांग्रेस की मुसलमानों को खुश करने वाली नीतियों को ललकारा और ऐसा माहौल खड़ा किया कि जैसे यह एक भारत-पाक युद्ध हो, न कि राज्य विधान सभा के चुनाव. पिछले दस साल से लगातार ’हिन्दु हृदय सम्राट’ का मुकुट पहन कर चलने वाले मोदी के लिए अब रातों रात धर्मनिरपेक्ष एवं सर्वमान्य नेता के रूप में अपनी पहचान बना पाना थोड़ा मुश्किल ही नजर आता है.

उच्चतम न्यायालय ने अब जब २००२ के नरसंहार में उनकी भूमिका की जांच अहमदाबाद के मेजिस्ट्रेट की अदालत को सुपुर्द करने का आदेश दिया है तब मोदी के लिए अपनी मुसलमान विरोधी छवि को मिटा कर एक धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में प्रतिस्थापित करना बहुत बड़ी चुनौती है. हिटलर के प्रचार मंत्री गोबेल्स से बोध पाठ सीखे मोदी ने एक झूठ को सौ बार सच के रूप में दोहरा कर सफ़ेद झूठ को सच के रूप में प्रस्थापित करने का प्रयास शुरू कर दिया है. इसका सबसे पहला कदम उठाया उन्होंने अपने जन्म दिवस से शुरू किए गए तीन दिवसीय ’सद्भाव’ उपवास से. गुजरात विश्व विद्यालय के वातानुकूलित विशाल सभागृह में आयोजित उपवास समारोह में राज्य भर से हजारों की संख्या में ट्रक, बस तथा ट्रैक्टर से लोग लाए गए. उपवास के पहले दिन विशेष कर भारी संख्या में मुसलमान स्त्री-पुरुषों को लाया गया. इन्हें बुर्का तथा नमाज़ी टोपी पहन कर आने को कहा गया और मंच के सामने पहली कतारों में बैठाया गया ताकि टीवी कैमेरा इसका देश-विदेश में सीधा प्रसारण कर सकें.

इसी प्रकार, दक्षिण गुजरात से आदिवासी युवकों को इसाई पादरियों का चोगा तथा क्रोस पहना कर मंच पर बिठाया गया. इन तथा कथित इसाई पादरियों से जब एक अंग्रेज़ी अखबार के पत्रकार ने अंग्रेज़ी में सवाल पूछे तब जा कर इस बात का पर्दाफ़ाश हुआ कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी के आयोजकों ने सिर्फ़ मंच पर दिखावे के लिए ये वेशभूषा पहनाई थी. सद्बावना उपवास एक नाटक मात्र था यह तथ्य इसी प्रकार की एक और हास्यास्पद किस्से से जाहिर हो गई जब दर्शकों ने मंच पर विराजमान एक शक्स को, जो अरब शेख के कफ़्तान और कैफ़िए पहने था, अहमदाबाद के पूर्व उपायुक्त के रूप में पहचान लिया.

जहां एक ओर इस प्रकार के नाटकीय प्रदर्शन से मोदी यह बात साबित करने की नाकाम कोशिश करते नजर आए कि उन्हें सभी धर्म के लोगों का समर्थन प्राप्त है, वहीं मंच पर विराजमान भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली, लोक सभा में विपक्ष की नेता सुष्मा स्वराज, पंजाब के अकाली दल के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल तथा हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल द्वारा अपनी भूरी-भूरी प्रशंसा करा कर यह संदेश दिया कि उन्हें न केवल भाजपा के नेतृत्त्व का बल्कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दलों का भी समर्थन प्राप्त है. तामिल नाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने भी अपने दल के दो सांसदों को मोदी के सद्भावना उपवास कार्यक्रम में शामिल होने भेजा था.

उपवास के अंतिम दिन के भाषण ने मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री पद के दावेदार होने की अपनी बृहद आकांक्षा को यह कह कर जग जाहिर कर ही दिया कि वे अब अपना सर्वस्व देश की सेवा में अर्पित करना चाहते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि देश को यदि बड़े सपने देखने और उन्हें साकार होते हुए देखना है तो गुजरात के नक्शे कदम पर चलना होगा. उन्होंने दावा किया कि गुजरात ने देश के सामने सद्भावना, सुलह-शांति तथा सर्वांगी विकास की बेहतरीन मिसाल पेश की है.

लेकिन मोदी का यह दावा भी २००२ की हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों ने खोखला साबित कर दिया. "बिना न्याय के सद्भाव संभव नहीं" का नारा देकर इन पीडित लोगों ने मोदी के उपवास के दूसरे दिन अहमदाबाद के नरोड़ा पाटिया और गुलबर्ग सोसायटी में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जिनको पुलिस ने लाठी चला कर और गिरफ़्तार कर प्रदर्शन स्थल से हटा दिया. प्रदर्शन में शामिल होने जा रहे दंगा पीड़ितों के वकील मुकुल सिंहा तथा सुप्रसिद्ध नृत्यांगना एवं कर्मशील सामाजिक कार्यकर्ता मल्लिका साराभाई को भी पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया.

प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष के सर्वमान्य उम्मीदवार होने का उनका दावा भी न केवल राजग के नेता नितीश कुमार ने बल्कि भाजपा के आला कमान ने भी यह कह कर झूठा साबित कर दिया कि अब तक इस बारे में किसी भी व्यक्ति का नाम तय नहीं किया गया है. हालांकि लाल कृष्ण आडवाणी ने मोदी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के समर्थन में यह कह कर कि वे एक सक्षम नेता हैं पुष्टि अवश्य की, मगर लोक सभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने उपवास मंच से मोदी को अपनी कार्यक्षमता का लाभ केवल गुजरात तक सीमित रखने की सलाह दी.

सर्वांगी विकास का मोदी द्वारा प्रसारित तथा प्रचारित गुजरात मोडल को न केवल विपक्षी कांग्रेस के नेताओं ने चुनौती दी है बल्कि उन्हीं के दल भाजपा के विधायक कनुभाई कलसारिया तथा मोदी मंत्रीमंडल में रह चुके गोर्धनभाई झडफिया ने भी दी है. सद्बावना उपवास को झूठा तथा मोदी सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर करने राज्य कांग्रेस के  अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया, पूर्व अध्यक्ष शंकरसिंह वाघेला तथा विधान सभा में विपक्ष के नेता शक्तिसिंह गोहिल ने साबरमती आश्रम के सामने फुटपाथ पर तीन दिन के समानान्तर उपवास पर बैठे. इससे पहले गुजरात से कांग्रेस के सांसदों के एक प्रतिनिधि मन्डल ने राष्ट्रपति को एक ज्ञापन पत्र देकर मोदी सरकार द्वारा कुछ गिने चुने औद्योगिक घरानों को पानी के मोल करोड़ों की जमीन देने में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों की लोकपाल द्वारा जांच करने की मांग उठाई.

खेती की जमीन को औद्योगिक घरानों को सस्ते में बांटे जाने के सवाल पर भाजपा के विधायक कनुभाई कलसारिया ने हाल ही में भावनगर से जामनगर तक की सायकल यात्रा की जिसमें समुद्र किनारे बसे सैंकड़ों किसानों ने भाग लिया. सरकार द्वारा उपजाऊ जमीन को औद्योगिकरण के लिए दिए जाने के सवाल पर दक्षिण गुजरात से लेकर कच्छ तक के १६०० किलो मीटर समुद्री तट के गांवों में जगह-जगह आंदोलन चल रहे हैं जिसमें भाजपा के विधायक के अलावा ९४ वर्षीय गांधीवादी चुनीभाई वैद्य सक्रीय रूप से जुड़े हैं. दिल्ली में जन लोकपाल की मांग को लेकर अनशन करने से पहले, अन्ना हजारे ने भी अपनी गुजरात यात्रा के दौरान यह घोषणा की थी कि वे खेती योग्य जमीन को उद्योगों को सौंपने के मसले पर अपना अगला आन्दोलन करेंगे. अन्ना हजारे की गुजरात दौरे के समय चुनीभाई वैद्य ही उनके स्थानिक यजमान थे. आगामी १ अक्तूबर से अन्ना हजारे और उनके सहयोगी फिर से गुजरात का दौरा करने वाले हैं जिस समय जमीन का मुद्दा एवं गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति का मामला उछलेगा.

गुजरात के राज्यपाल कमला बेनीवाल द्वारा उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश आर ए मेहता की नियुक्ति को मोदी सरकार ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी है. साथ ही अपने सद्बावना उपवास के तुरंत बाद अहमदाबाद में एक विशाल रैली का आयोजन कर मोदी ने राज्यपाल की वापसी की मांग भी उठाई. अब वे राज्य के सभी जिला मुख्यालयों में राज्यपाल हटाओ मांग को लेकर रैलियों का आयोजन करेंगे. याद रहे, राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर भाजपा ने संसद के दोनों सदनों की कार्रवाही को भी तीन दिन तक स्थगित किया था.

जहां एक ओर लोकायुक्त और उनकी सरकार के खिलाफ़ भ्रष्टाचार के मामले में मोदी घिरते हुए नज़र आ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर फ़र्ज़ी मुठभेड़ों की जांच कर रही उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल की रपट में मोदी के निकटस्थ पूर्व गृहमंत्री अमित शाह सहित ३० से अधिक पुलिस अधिकारियों  की संदिग्ध भूमिका का मामला भी गंभीर स्वरूप धारण कर सकता है जिससे मोदी सरकार चिंताजनक परिस्थिति में फ़ंस सकती है.

इस प्रकार दिल्ली की गद्दी पर नजर टिकाने से पहले मोदी को अपने ही राज्य गुजरात में उनकी बिगड़ती परिस्थिति को संभालना होगा.


Tuesday, September 20, 2011

सौ चूहे खा के चले हज करने

अपने दस साल के कार्यकाल में पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्य में सद्बभावना का वातावरण बनाने के घोषित उद्देश्य से अपने ६१ वें जन्म दिवस, १७ सितम्बर, से तीन दिन का अनशन करने जा रहे हैं. यदि ऐसा अनशन उन्होंने गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस पर २७ फ़रवरी २००२ को हुए हमले के बाद किया होता कि जिसमें अयोध्या से लौट रहे ५९ कार सेवक आग में जल कर मर गए थे तो उसके बाद हुई जघन्य हिंसा में २,००० से ऊपर निर्दोष मुसलमान न मारे गए होते. उस समय तो उन्होंने पुलिस प्रशासन से कहा कि हिन्दुओं के गुस्से को प्रकट हो जाने दो, उन्हें मत रोको. राज्य की खूफ़िया पुलिस अधिकारियों के मना करने पर भी उन्होंने जली हुई लाशों को गोधरा से अहमदाबाद लाने से नहीं रोका. लाशों का जुलूस निकाला गया और साथ ही शहर की मुसलमान बस्तियों पर उन्मत्त दंगाइयों ने कहर बरपाना शुरू कर दिया. 

तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, "मोदी अपना राजधर्म" भूल गए. मोदी सरकार में गृह मंत्री हरेन पंड्या ने नागरिक अधिकार संगठनों द्वारा नियुक्त जांच कमिशन के सामने कबूला कि सरकार ने जानबूझकर मुसलमानों पर हुई हिंसा को रोकने के कोई भी प्रयास नहीं किए. विधान सभा चुनाव घोषित हुए. हरेन पंड्याने मोदी के लिए एलिस ब्रिज विधान सभा सीट खाली करने से मना कर दिया. कुछ ही दिन बाद कुछ लोगों ने गोली मार कर हरेन पंड्या की दिन दहाडे हत्या कर दी. उन की लाश को देखने जब मोदी और तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी अस्पताल पहुंचे तो पंड्या समर्थकों ने नारे बाजी से उनका विरोध किया. मोदी ने तब भी उपवास नहीं किया. 

विधान सभा चुनाव में सद्भावना और भाईचारे की बात के बदले मोदी ने पाकिस्तान-प्रेरित मुस्लिम आतंकवाद पर हिंदुओं को उत्तेजित करने वाले भाषण दिए. भाषणों मे पाकिस्तान के तानाशाह राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ और तुष्टिकरण की नीति अपनाने वाली कांग्रेस पर तीखे प्रहार करके मोदी ने ऐसा माहौल खड़ा कर दिया मानों ये विधान सभा चुनाव नहीं बल्कि हिंदुस्तान बनाम पाकिस्तान का युद्ध हो रहा हो. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बल पर मोदी भारी बहुमत से चुनाव जीत गए. सांप्रदायिक सद्भाव के लिए उपवास की बात तो दूर, मोदी ने सांप्रदायिक तनाव बढाने के ही प्रयास किए.

मोदी की चाटुकारिता कर अपना उल्लू सीधा करने वाले पुलिस अधिकारी इस कोशिश में लग गए कि कैसे भी मोदी की हिन्दु हृदय सम्राट प्रतिमा को मंडित किया जाए. इसी प्रयास के भागरूप शोहराबुद्दिन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी तथा मुम्बई की इशरत जहान की फ़र्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई. इन चाटुकार और आपराधिक मनोवृत्ति वाले पुलिस अधिकारियों को मलाईदार पदों पर नियुक्त किया गया. 

पाप के घडे को एक दिन फूटना ही होता है. निष्पक्ष और कानून एवं संवैधानिक तरीके में विश्वास रखने वाले पुलिस अधिकारी रजनीश राय ने फ़र्ज़ी मुठभेड करने वाले भ्रष्ट और आपराधिक मानस वाले पुलिस अधिकारियों को गिरफ़्तार किया जो चार साल से ज्यादा समय से आज भी जेल के सीखचों के पीछे हैं. नगर मेजिस्ट्रेट एस पी तमांग ने, कि जिन्हें इशरत जहान की पुलिस मुठभेड की जांच की, पाया कि यह एक फ़र्जी मुठभेड़ थी. गुजरात उच्च न्यायालय ने इस की जांच के लिए एक विशेष अन्वेषण दल का गठन किया. इस विशेष दल के एक सदस्य सतीष वर्मा ने भी अपनी जांच में मेजिस्ट्रेट तमांग के नतीजे की पुष्टि ही की. फ़र्जी मुठभेड़ के मामले ने अब और एक नया मोड़ लिया जब शोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने केन्द्रीय अन्वेशन ब्यूरो (सीबीआई) से गुजरात के दो पूर्व राज्य पुलिस महानिदेशक, पीसी पान्डे तथा ओपी माथुर की गिरफ़्तारी की मांग की इस बिना पर कि वे जांच में बाधा पहुंचा रहे हैं. शोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी की फ़र्जी मुठभेड़ की जांच सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को सौंपी है. इसी मामले में गुजरात के गृहमंत्री अमित शाह को गिरफ़्तार किया गया था जिन्हे अदालत ने जमानत पर रिहा तो कर दिया लेकिन जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात में प्रवेश करने पर रोक लगा दी है. 

इस बीच भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ट अधिकारी संजीव भट्ट ने उच्चतम न्यायालय में एक हलफ़नामा दिया जिसमें उन्होंने कहा कि २००२ गोधरा कांड की रात को मोदी ने मुख्य मंत्री आवास पर अधिकारियों की मीटिंग में हिन्दुओं को अपना आक्रोष प्रकट करने से न रोका जाए ऐसा निर्देश दिया. मोदी सरकार ने संजीव भट्ट को अपने ऊपरी अधिकारी की बात न मानने के आरोप में निलम्बित कर दिया. इसी प्रकार सरकार ने एक अन्य भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी राहुल शर्मा के खिलाफ़ गुप्त जानकारी को जाहिर करने के आरोप में कारण बताओ नोटिस दी. राहुल शर्मा ने सरकार द्वारा नियुक्त जांच कमिशन को एक सीडी सुपुर्द की थी जिसमें दंगो के समय पुलिस अधिकारियों, मोदी और उनके कई मंत्रियों के बीच हुई मोबाईल फोन पर बात के रेकोर्ड हैं. 

अब जब सर्वोच्च न्यायालय ने २००२ के नरसंहार में मोदी के खिलाफ़ लगे आरोपों की सुनवाई मेट्रोपोलिटन मेजिस्ट्रेट की अदालत को करने के आदेश दिए हैं तो भारतीय जनता पार्टी के नेता इसे मोदी की जीत बतला रहे हैं और यह झूठा प्रचार कर रहे हैं कि उच्चतम न्यायालय ने मोदी को निर्दोष ठहराया है. उच्चतम न्यायालय का निर्देश फ़ौजदारी कानून प्रक्रिया के अनुरूप है जिसमें किसी भी आपराधिक मुकदमें की सुनवाई पहले सबसे निचली अदालत में ही की जाने का प्रावधान है. उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय सिर्फ़ निचली अदालतों के फ़ैसले पर पुनर्विचार करते हैं. 

सर्वोच्च अदालत ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि मेट्रोपोलिटन मेजिस्ट्रेट २००२ के दंगे में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री की बेवा से उन सभी सबूतों और गवाहियों की जांच करे जो उनके पास हैं. सर्वोच्च अदालत ने उसके द्वारा नियुक्त स्पेशल इन्वेस्टिगेटिंग टीम तथा एमिकस क्यूरी की रपट को भी मेजिस्ट्रेट की अदालत में पेश करने के आदेश दिए हैं. इस के अलावा भारतीय पुलिस सेवा के संजीव भट्ट, राहुल शर्मा एवं रजनीश राय के हलफ़नामा को भी मेजिस्ट्रेट की अदालत जांच करेगी.  

जहां एक ओर उनकी २००२ दंगों में भूमिका को लेकर मोदी पर कानून का शिकंजा कसता दिखाई दे रहा है, वहीं दूसरी ओर उनके खिलाफ़ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सामने आ रहे हैं. गुजरात में टाटा सहित कई औद्योगिक घरानों को मिट्टी के मोल खेती की जमीन बांटने में एक लाख करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है यह आरोप विपक्ष के नेता लगा रहे हैं. भाजपा के ही विधायक कनुभाई कलसारिया भावनगर से जामनगर एक सायकल यात्रा पर केवल इस मुद्दे को आगे बढाने के लिए निकले हैं. कलसारिया के नेतृत्व में हुए जन आन्दोलन के कारण हाल ही में उद्योग घराने ’निरमा’ द्वारा खडे किए जा रहे सीमेन्ट प्लान्ट पर हो रहे निर्माण को बंद करना पड़ा. कलसारिया ने भी लोकायुक्त द्वारा मोदी सरकार के खिलाफ़ भ्रष्टाचार की जांच कि मांग की है. 

गुजरात में २००३ से लोकायुक्त पद खाली है. मोदी ने उच्च न्यायालय और राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त के लिए सुझाए हर नाम का लगातार विरोध किया है. जब मोदी सरकार लोकायुक्त की नियुक्ती में मुख्यमंत्री का अधिकार हो इस उद्देश्य अध्यादेश लाना चाहती थी तो राज्यपाल ने उसपर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया और तत्काल उच्चन्यायालय के सेवा निवृत्त न्यायाधीश आर ए मेहता को लोकायुक्त नियुक्त कर दिया. दूसरे ही दिन मोदी सरकार ने लोकायुक्त के कार्यालय पर ताला लगा दिया और उनकी नियुक्ती को उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी. उच्च न्यायालय ने इस मामले में राज्यपाल को प्रतिवादी बनाने से इनकार कर दिया. लोकायुक्ति की नियुक्ती के मुद्दे को लेकर भाजपा ने संसद के दोनों सदनों की कार्रवाही तीन दिन तक ठप्प कर दी थी. जहां भाजपा नेताओं ने राज्यपाल पर तीखे प्रहार किए, वहीं मोदी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिख कर न्यायाधीश मेहता के खिलाफ़ सरकार के प्रति द्वेषपूर्ण भावना रखने का आरोप लगाया. उच्च न्यायालय ने इस पर मोदी सरकार से यह खुलासा मांगा कि मुख्य मंत्री का प्रधान मंत्री के नाम पत्र की नकल अखबारों तक कैसे पहुंची.

लोकायुक्त की नियुक्ती को लेकर जहां मोदी को न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली, वहीं सर्वोच्च अदालत ने भी मोदी के खिलाफ़ आरोपों पर मेजिस्ट्रेट की अदालत में कानूनी कार्रवाही करने की प्रक्रिया को गतिमान कर दिया. अपने फ़ैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहीं भी यह नहीं कहा कि ये आरोप झूठे हैं. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला आने के मिनटों में ही भाजपा के नेताओं ने मोदी निर्दोष हैं इस उद्देश्य के एसएमएस मोबाईल ग्राहकों को भेजने शुरू कर दिए. फ़ैसले पर तीन दिन चुप्पी साधने के बाद मोदी ने अचानक घोषणा कर दी कि वे राज्य में सद्भावना का वातावरण बनाने हेतु १७ सितम्बर से तीन दिन का अनशन करेंगे. इस अनशन के लिए गुजरात विश्वविद्यालय का कन्वेन्शन हॊल खाली करवा दिया गया, उसमें क्लोस सर्किट टेलिविज़न कैमेरा लगा दिए गए और २,००० सुरक्षा कर्मी नियुक्त कर दिए गए. 

मोदी ने अनशन की घोषणा गुजरात की जनता के नाम एक खुले पत्र में की जिसमें उन्होंने कहा कि सर्वोच्च अदालत ने अब तक चल रहे विवादों का अंत ला दिया और उन सभी लोगों को झूठा साबित कर दिया जो गुजरात की छह करोड़ जनता को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं. इस पत्र की भाषा कि जिसमें मोदी ने अपने आप पर लगे आरोपों को गुजरात की जनता पर आरोप के रूप में जतलाने की कोशिश की है, आपातकाल में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देव कान्त बरुआ के इस बहु चर्चित बयान की बू आती है जिसमें उन्होंने कहा था कि "इन्दीरा ही भारत है और भारत ही इन्दीरा है".

मोदी के अनशन को एक ढोंग बता कर और उनके झूठ तथा भ्रष्टाचार का ’पर्दाफाश’ करने के लिए राज्य कांग्रेस के नेता शंकर सिंह वाघेला, शक्तिसिंह गोहिल तथा अर्जुन मोढवाडीया १७ सितम्बर से ही साबरमती आश्रम प्रांगण में तीन दिन का अनशन कर रहे हैं. हाल ही में मुसलमानों ने रमज़ान के लिए और जैन ने पर्यूषण के पर्व पर उपवास रखे थे जिससे समाज में सद्बावना बढी थी. अब देखना है कि दो राजनैतिक विरोधियों के इन उपवास से क्या होता है.

उपवास की नौटंकी: दिल्ली अभी दूर है


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी बचपन में नौटंकी में अभिनय किया करते थे. वे न केवल अभिनय करने में माहीर हैं बल्कि उन्हें दर्शकों का मनोरंजन कैसे किया जाए इस बात का भी बखूबी अंदाज़ है. उन्हें किस मौके पर कैसी पटकथा लिखी जाए और कौन से डायलोग पर दर्शक तालियां बजाएंगे इस बात का भी सटीक पता है. गुजरात का राजनैतिक रंगमंच इस बात का गवाह है.

भारतीय राजनीति में कई अभिनेता नेता तो बन गए मगर आन्ध्र प्रदेश के एनटी रामाराव और तमिल नाडु के एमजी रामचंद्रन तथा जयललिता को छोड़ कर कोई भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया. अब यदि नरेन्द्र मोदी का त्रिअंकीय नाटक ’सद्बाव उपवास’ - समभाव के साथ-साथ सर्वांगी विकास -  २०१४ के आम चुनाव में ’हिट’ हो जाता है तो गांव की रामलीला से अपने अभिनय की शुरुआत करने वाले नेता का दिल्ली के सिंहासन पर बैठने का सपना साकार हो सकता है. हालांकि, इस महानाटक में खलनायक की भूमिका उनकी ही भारतीय जनता पार्टी तथा सहयोगी दलों के कई दिग्गज नेता निभा सकते हैं.  
   
अपने इकसठवें जन्म दिवस, १७ सितम्बर, से तीन दिन का उपवास कर मोदी ने यह साबित करने का प्रयास किया कि देश में उनके अलावा कोई और राजनेता ऐसा नहीं है जो सर्वधर्म समभाव के साथ-साथ सर्वांगी विकास का रास्ता दिखा सके. इस प्रचार प्रयास के पीछे उन्होंने सरकारी तिजोरी से करोड़ों रुपए खर्च किए. बसों, ट्रकों, ट्रैक्टर, टेम्पो से लाद कर गुजरात के कोने-कोने से लोग जुटाए गए. गोधरा कांड के बाद हुए नरसंहार के बाद ’हिन्दु हृदय सम्राट’ का खिताब पाने वाले मोदी ने टोपी पहने नमाज़ियों और बुर्का पहनी औरतों को अनशन स्थल पर भारी संख्या में लाने का इंतजाम किया. उन्हें गुजरात विश्वविद्यालय के वातानुकूलित सभागृह में अगली कतारों में बिठाया. मंच पर सभी समुदायों के धर्मगुरुओं को स्थान दिया गया. अपने साथ की कुर्सियों पर भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी तथा राजनाथ सिंह के अलावा राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली और भाजपा के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद को बिठाया. पंजाब और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री परकाश सिंह बादल तथा प्रेम कुमार धूमल को भी मंच पर स्थान दिया गया.  

भारतीय दर्शकों के लिए सद्भाव उपवास का संदेश था - मोदी केवल गुजरात की छह करोड़ जनता के ही नहीं, पूरे देश के सर्वमान्य नेता हैं और देश को यदि प्रगति करनी है तो ’गुजरात मोडल’ पर चलना होगा. सद्भाव उपवास में जहां मोदी ने अपने हिन्दुत्ववादी चेहरे पर धर्मनिरपेक्ष नेता का मुखौटा पहना, वहीं हर दो साल में एक बार आयोजित ’वाइब्रन्ट गुजरात’ महामेले में उन्होंने एक मंच पर रतन टाटा, मुकेश और अनिल अंबानी बंधु, शशी और रवि रुइआ बंधु तथा एक दर्जन से अधिक उद्योगपतियों को इकठ्ठा कर ’मोदी ही प्रधानमंत्री बनने योग्य नेता हैं’ का नारा लगवाया था. 

महानाटक में जब एक साथ सैंकडों पात्र अभिनय करते हों तो पटकथा तथा संवाद बोलने में गलतियों का हो जाना सामान्य बात है. जिस तरह छोटे कस्बों में दर्शकों को रामलीला में हनुमान का अभिनय करने वाले बीड़ी सुलगाते हुए दिख जाते हैं उसी तरह सद्भाव उपवास में मंच पर अरब शेख की वेश भूषा में एक व्यक्ति नज़र आए जिन्हें दर्शकों ने तुरन्त पहचान लिया कि वे कोई अरब देश से आए मेहमान नहीं बल्कि अहमदाबाद महानगर पालिका के पूर्व उप आयुक्त ज़ेड ए साचा हैं. स्वयं को अल्पसंख्यक समुदाय के बीच लोकप्रिय साबित करने के लिए मोदी ने राज्य भर से सैंकड़ों की संख्या में मुसलमान नर, नारी बुलाए थे जिन्हें नमाज़ी टोपी और बुर्का पहन कर आने को कहा गया था. जहां हिन्दु संप्रदाय के कई धर्मगुरुओं ने मोदी को अलग-अलग प्रकार की पगडियां पहना कर नवाज़ा, वहीं पीराना बाबा के नाम से प्रख्यात मौलाना हुसैन ने जब उन्हें टोपी पहनानी चाही तो मोदी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया. इसे पीराना बाबा ने अपनी नहीं बल्कि इस्लाम की बेइज्जती कहा. 

सद्भावना उपवास सिर्फ़ एक नाटक है यह बात २००२ में हुए नरसंहार में जो मारे गए उनके परिवार के सदस्यों ने नरोड़ा पाटिया तथा गुलमर्ग सोसायटी में ’न्याय के बगैर सद्भाव कैसा’ के नारे के साथ किए गए प्रदर्शन द्वारा उठाई. नरोडा पाटिया में एक ही दिन में एक सौ से अधिक लोगों को काट कर या जला कर मार दिया गया और गुलबर्ग सोसायटी में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री सहित साठ लोगों को मार दिया गया था. नरोड़ा पाटिया में दंगा पीड़ित महिलाओं द्वारा आयोजित प्रदर्शन में शामिल होने जा रही प्रसिद्ध समाज कर्मी मल्लिका साराभाई तथा वरिष्ट अभिवक्ता मुकुल सिंहा को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया. 

मुसलमानों को भारी संख्या में उपवास स्थल पर प्रमुख स्थान दिए जाने से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा विश्व हिन्दु परिषद के नेता भी मोदी की ’मुस्लिम तुष्टीकरण’ राजनीति से नाराज़ हैं. शिवसेना अध्यक्ष बाला साहेब ठाकरे ने भी मोदी के उपवास स्थल पर ’अल्लाह ओ अकबर’ के नारे लगने पर आपत्ति प्रकट कर चेतावनी दी है कि कहीं इस कारण ’हर हर महादेव’ की गूंज दब न जाए. शिवसेना के मुखपत्र ’सामना’ में लिखे संपादकीय में ठाकरे ने मोदी को याद दिलाया कि तीव्र हिन्दुत्व की नीति के कारण ही उन्हें गुजरात में बहुमत प्राप्त हुआ था. 

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहभागी अकाली दल तथा जयललिता की एआईएडीएमके ने जहां मोदी की सद्भावना उपवास का समर्थन किया, वहीं जनता दल (य़ू) ने इस कार्यक्रम में शामिल न हो कर इसका परोक्ष रूप से विरोध किया. बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए राजग का सर्व मान्य उम्मीदवार मानने से इनकार कर दिया. 

सद्भाव उपवास की समाप्ति पर मोदी ने ऐलान किया कि वे अब गुजरात के सभी जिलों में ’सद्भाव के साथ सर्वांगी विकास’ के लिए एक-एक दिन का उपवास करेंगे. महानाटक का रूपांतरण नुक्कड़ नाटक में होगा. इस बीच, त्रिदिवसीय उपवास में हुए सरकारी खर्च, जो लगभग एक सौ करोड़ रुपया आंका जा रहा है, की वसूली मोदी या राज्य भाजपा से की जाए ऐसी मांग गुजरात उच्च न्यायालय में एक जन हित याचिका के द्वारा की गई है. 

गुजरात नरसंहार: बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी


उच्चतम न्यायालय ने २००२ के गुजरात में हुए नरसंहार के लिए मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार हैं कि नहीं इस बात की जांच अहमदाबाद के मेजिस्ट्रेट की अदालत को सुपुर्द कर दी है. उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्देश दिए कि इस जांच में उसके द्वारा नियुक्त स्पेशियल इन्वेस्टिगेशन टीम एवं एमिकस क्यूरी (वरिष्ट अधिवक्ता) की रपट को ध्यान में रखा जाए. साथ ही नरसंहार में जिन लोगों ने अपने परिजनों को खोया है उनके द्वारा अतिरिक्त गवाही एवं सबूतों को भी सुना और देखा जाए. 

भारतीय जनता पार्टी ने उच्चतम न्यायालय के इस निर्देश को मोदी को निर्दोष घोषित किए जाना बतलाया है, जो कि अर्ध सत्य ही नहीं बल्कि सरासर झूठ है. उच्चतम न्यायालय ने मोदी के खिलाफ़ लगाए गए आरोपों का कोई खंडन नहीं किया है. बल्कि, २००२ में हुए दंगों में उनकी भूमिका की मेजिस्ट्रेट की अदालत में जांच करने के आदेश ही दिए हैं. अब यह मामला निचली अदालत में चलेगा, और शायद यह एक लंबी प्रक्रिया होगी. गौर तलब है कि उच्चतम न्यायालय में किसी भी फ़ौजदारी केस की सुनवाई नहीं होती, वहां सिर्फ़ निचली अदालतों के फ़ैसलों पर सुनवाई होती है और उन पर अंतिम फ़ैसला सुनाया जाता है.

लेकिन इस तथ्य को छुपा कर, भाजपा नेता इस भ्रामक प्रचार में जुट गए हैं कि उच्च अदालत ने मोदी को तमाम आरोपों से बरी कर दिया है और यह कि विपक्ष तथा नागरिक अधिकार संगठन पिछले ११ सालों से मोदी को बदनाम करने की कोशिश में लगे हैं. स्वयं मोदी ने उच्चतम न्यायालय के निर्देश को ’विवादों का अंत’ बतलाया है और अपने खिलाफ़ लगे आरोपों को गुजरात की ६ करोड़ जनता को बदनाम करने की साजिश कहा है. मोदी ने २००२ के नरसंहार को ’एक क्रिया की प्रतिक्रिया’ कहा था, जब कि तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने गोआ के भाजपा अधिवेशन में मोदी सरकार की आलोचना यह कह कर की थी कि मोदी अपना राजधर्म भूल गए हैं.

जो मोदी करण थापर के टीवी चैट शो के बीच से तब भाग खडे हो गए जब उन्हें २००२ के नरसंहार के कारण धूमिल हुई उनकी छवि को सुधार ने लिए सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगने को कहा गया था, अब उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद १७ सितम्बर से तीन दिन का उपवास कर रहे हैं इस घोषित उद्देश्य के साथ की गुजरात में सद्भाव का वातावरण बने. अपने दस वर्ष के कार्यकाल में पहली बार मोदी ने जनता के नाम एक खुला पत्र भी लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि सर्वोच्च अदालत ने अब तक उठाए सभी विवादों का अंत ला दिया है और इस लिए वे अब समाज में सद्भावना अभियान चलाना चाहते हैं. 

उनकी मुसलमान विरोधी छवि के कारण बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार ने मोदी को विधान सभा चुनाव प्रचार से दूर रखा था. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन के कई घटक दल मोदी के अतिवादी सांप्रदायिक तेवर के कारण उनसे कतराते रहे हैं. दूसरी ओर, भाजपा कई युवा नेता मोदी को भावी प्रधान मंत्री के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. अब जब २००२ के नरसंहार में उनकी भूमिका का मामला निचली अदालत में चलाए जाने में एक लंबा समय लगने की संभावना है तब मोदी अपने आप को एक सेक्यूलर राष्ट्रीय नेता के रूप में साबित करना चाह रहे हैं. जब तक उन पर लगाए आरोप साबित या खारिज नहीं होते, साबरमती नदी में बहुत पानी बह चुका होगा और राष्ट्रीय राजनीति भी किसी अनिश्चित मोड़ पर पहुंच चुकी होगी. 

भाजपा के वरिष्ट नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने भी मोदी की राष्ट्रीय राजनीति में संभावित भूमिका के बारे में अटकलों को यह कह कर बढावा दिया कि देश को मोदी जैसे बहु प्रतिभावान एवं प्रभावी नेता की आवश्यकता है. लेकिन गुजरात में मोदी की मौजूदा हालत नाजुक प्रतीत हो रही है. एक ओर जहां उनकी २००२ के नरसंहार में भूमिका को लेकर वरिष्ट पुलिस अधिकारी जैसे संजीव भट्ट, राहुल शर्मा और रजनीश राय ने हलफ़नामा देकर सवालिया निशान खड़े कर रखे हैं, जिसको निचली अदालत अनदेखा नहीं कर सकती, वहीं दूसरी ओर राज्यपाल श्रीमती कमला बेनीवाल द्वारा गुजरात उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आर ए मेहता की लोकपाल के पद पर की गई नियुक्ती को राज्य सरकार द्वार चुनौती देने से मोदी पेंचीदी परिस्थिती में फ़ंस गए हैं.

लोकपाल के लिए पूर्व न्यायाधीश मेहता के नाम का सुझाव गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने स्वयं दिया था. तदुपरांत, वर्तमान कानून में लोकपाल की नियुक्ती का अधिकार राज्यपाल को ही है, न कि राज्य के मुख्यमंत्री को. लोकपाल का पद पिछले सात साल से खाली पडा था जिसे मोदी सरकार ने अपनी आपत्ती जता कर भरने नहीं दिया था. इस पर उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका के दाखिल करने पर, राज्य सरकार ने एक अध्यादेश जारी करने के प्रयास किए जिसमें लोकपाल की नियुक्ती का अधिकार मुख्यमंत्री को दिए जाने का प्रावधान था. इस अध्यादेश पर राज्यपाल ने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और ततकाल न्यायाधीश मेहता की नियुक्ती की घोषणा कर दी.

राज्यपाल द्वारा मेहता की नियुक्ति की घोषणा के दूसरे ही दिन मोदी सरकार ने लोकपाल कार्यालय पर ताला लगा दिया और उनकी नियुक्ती को उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी. उच्च न्यायालय ने इस मामले में राज्यपाल को प्रतिवादी बनाने से इनकार कर दिया और मोदी सरकार को एक नोटिस भेजी कि वह इस बात की सफ़ाई दे कि कैसे मोदी द्वारा प्रधान मंत्री को लिखा गया पत्र अखबारों तक पहुंच गया जिसमें मोदी ने न्यायाधीश मेहता के खिलाफ़ सरकार के प्रति द्वेषपूर्ण भावना रखने का आरोप लगाया गया था. 

इस से पूर्व राज्य कोंग्रेस के एक प्रतिनिधी दल ने राष्ट्रपति को मिल कर मोदी सरकार के खिलाफ़ एक प्रतिवेदन दिया गया था जिसमें गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप थे. कोंग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार ने कई औद्योगिक घरानों को करोडों रुपए की जमीन माटी के मोल बेच दी है जिसमे सरकार को एक लाख करोड रुपए से अधिक का नुकसान पहुंचा है.

इन आरोपों की जांच लोकपाल न कर सके इस उद्देश्य से मोदी सरकार ने एक जांच आयोग की घोषणा कर दी. जब कोई जांच आयोग किसी मामले में जांच कर रहा हो उस परिस्थिती में लोकपाल उस पर कोई कार्रवाही नहीं कर सकता ऐसा लोकपाल कानून में प्रावधान है.