Saturday, September 09, 2006

ऐसे बिकते हैं केसरिया पेडे

(यह लेख १९९९ में उस समय लिखा गया था जब पोप की भारत यात्रा पर संघ परिवार ने देश भर में भारी उहापोह मचाई थी)

नागपुर स्थित संघ मुख्यालय के फोन की घंटी सुबह तीन बजे बज उठी. गुरूजी ने झुंझलाकर फोन उठाया और भर्राई आवाज में गुर्राए, "कौन बदतमीज है?"


"क्षमा प्रार्थी हूं गुरुजी. मैं दिल्ली से गोविंद बोल रहा हूं. मामला इतना संगीन है कि इतनी देर रात को आपको कष्ट दे रहा हूं," सामने से घिघियाता हुआ जवाब मिला.

"जल्दी बको, इतना सुंदर सपना देख रहा था, सारा गुड गोबर कर दिया. कहे देता हूं कि यदि फालतू बात के लिए तुमने फोन किया है तो तुम्हें वापस नागालैंड भेज दूंगा. दिल्ली की बहुत हवा खा ली तुमने," गुरुजी गुर्राए.

"गुरुजी, आप तो मुझे तब से जानते हैं जब मुझे ठीक से निक्कर पहनना भी नहीं आता था. मुझे पागल कुत्ते ने नहीं काटा जो बेवजह आपकी नींद खराब करने की हिमाकत करूं. बात यह है कि हमारे जासूसों ने खबर दी है कि वेटिकन के धर्मगुरू ने भारत आने की टिकट कटा ली है. हमारी गीदड भभकियों का उन पर कोई असर नहीं हुआ. अब यदि यह फिरंगी गुरु यहां आता है तो अपनी दुकानदारी का क्या होगा?" गोविंद गिडगिडाते हुए बोला.

"अरे मूरख, तुम्हें भाजपा में क्या भेज दिया, तुम्हारी अकल घास चरने चली गई. शाखा में दी गई शिक्षा भूल गए? हमारी दुकानदारी की सबसे बडी खूबी यही है कि वह प्रतियोगी के बिना नहीं चलती. हमारा केसरिया पेडा तभी बिकेगा जब भोले-भाले ग्राहकों को हम यह बताएंगे कि पडोस के हलवाई की हरी बर्फ़ी में गाय की चर्बी मिली है और इटालियन पिज्जा में सूअर का गोश्त," गुरुजी ने जम्हाई लेते हुए कहा.

"लेकिन गुरुजी, अपने यहां करोडों ऐसे लोग हैं जो सब्जियां महंगी होने के कारण हमारी तरह शुद्ध शाकाहारी नहीं बन पाए हैं. वे तो इन बातों से भुलावे में नहीं आने वाले," गोविंद झिझकते हुए बोला.
'रहोगे तुम निपट मूरख ही. सयाने होते तो अब तक नागपुर मुख्यालय में प्रबंध संघ चालक बन गए होते और मेरी तरह आराम से शुद्ध गाय के शुद्ध दूध से बने पेडे खाते. देश भर के करोडों निक्कर धारियों से गुरु-दक्षिणा वसूल करते, सो अलग," गुरुजी ने गोविंद को फटकार लगाई.

"क्षमा करें प्रभो. दिल्ली में प्रतिदिन प्रेस कोन्फ़्रेन्स संबोधित करने के कारण मेरी मति मारी गई है. मेरी जड हो चुकी बुद्धि में आपकी बात ठीक से नहीं घुस पा रही है. केसरिया पेडे की बिक्री से हरी बर्फ़ी और इटालियन पिज्ज का क्या लेना-देना? महेरबानी कर मुझ गंवार को थोडा ग्यान दें," गोविंद लज्जित होने की मुद्रा में बोला.

"तो सुनो और मैं जो कहता हूं उसे अपनी सिंगापुर से स्मगल की हुई डिजिटल डायरी में नोट कर लो. लगता है तुम्हें अब स्वर्गीय श्री गुरु गोलमालकरजी महाराज के १००१ ब्रह्मवाक्यों की कम्पैक्ट डिस्क देनी ही पडेगी ताकि आगे अपने धंधे के मूलभूत सिद्धांतो को तो न ही भूलो," गुरुजी ने गोविंद को फिर एक बार फटकार लगाई.

"गुरुजी, एक मिनट, मैं फोन से लगा टेप रेकार्डर ओन कर लूं. हां, अब ठीक है, आप के हर सूत्र वाक्यों को मैं रेकार्ड कर रहा हूं ताकि इसे हर रोज सुबह, ध्वज वंदन के समय सुन सकूं," गोविंद ने विनीत स्वर में कहा.

गुरुजी ने खंखार कर गला साफ़ किया, पास पडे तांबे के लोटे में रखा केसर-मिश्रित दूध का एक घूंट भरा, और बोलने लगे:

"हम जिस केसरिया पेडे की लोगों में आदत लगाना चाहते हैं उसकी खासियत यह है कि उसे लोग तभी मजबूरी में खाते हैं जब उनमें दूसरे व्यंजनों के प्रति भय पैदा किया जाए. हरी बर्फ़ी और इटालियन पिज्जा बेचने वाले भी यही करते हैं. सबकी दुकानदारी एक-दूसरे के माल के प्रति लोगों में आशंका उत्पन्न करने से ही चलती है. यदि बाजार में हरी बर्फ़ी और इटालियन पिज्जा न हों, तो केसरिया पेडा कोई नहीं खरीदेगा."

"केसरिया पेडे ही क्या, सभी रंगों की मिठाइयों की मार्केटिंग की रणनीति का यह एक मात्र शास्वत मंत्र है. अब तुम वह टेप रिकार्डर बंद कर दो तो तुम्हें अति गोपनीय बात बताता हूं जिसे सिर्फ़ देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान पंडितजी एवं खूफ़िया विभाग का संचालन करने वाले मालपानीजी ही जानते हैं," गुरुजी ने फोन के माउथपीस को धोती में लपेट कर फुसफुसाते हुए कहा.

जब वे इस बात से आश्वस्त हो गए कि गोविंद ने टेप रेकार्डर बंद कर दिया है तो गुरुजी बोले, "वेटिकन के धर्मगुरु को यहां आने का निमंत्रण मैंने ही दिया था. ताकि वे आएं और इटालियन पिज्जा की खूब जोर-शोर से मार्केटिंग करें. हमारी वानर सेना तो तैयार ही बैठी है कि कब पिज्जा का कैम्पेन शुरु हो कि उसके खिलाफ़ प्रचार अभियान प्रारंभ करें. वैसे भी त्योहारों का मौसम चल रहा है. अपने केसरिया पेडे होट केक की तरह बिक जाएंगे."

Friday, September 08, 2006

जब आम ने सेब का काम किया

मैंने कभी सेब नहीं खाया था, फिर भी मुझे लडके-लडकी वाला प्यार हो गया.
हमारे गांव में सेब मिलता ही नहीं था. हां, केला, पपीता, कटहल, अमरूद, बेर, चीकू, इमली प्रचूर मात्रा में फलते-मिलते थे.
मुझे जहां तक याद है, जिस दिन मुझे लडके-लडकी वाला प्यार पहली-पहली बार हुआ, उस दिन मैंने पडोसी के बगीचे से आम चुरा कर खाए थे और इस कारण शाम को मां से चार-पांच थप्पड भी खाए थे.
मैंने उस लडकी को भी चुराए हुए आमों में से एक यह कह कर दिया था कि यदि वह मेरे पास वाली सीट पर बैठे तो मैं उसे रोज आम दिया करुंगा.
वह खिल-खिल कर हंस दी और अपने दांतों बीच आम फंसा कर भाग खडी हुई. बस, उसी दिन मुझे मेरा पहला-पहला प्यार मिला. कच्चे आम की तरह कुछ खट्टा, कुछ मीठा.
बरसों बाद जब मैंने आदम और हौआ की कहानी पढी तब जा कर पता चला कि सेब एक वर्जित फल है, जिसे खाना पाप है, क्योंकि इसे खाने से लडका-लडकी अपनी मासूमियत खो देते हैं और उन्हें प्यार हो जाता है.
आदम और हौआ के जमाने में पडोसियों के बगीचे में शायद सेब ही फलते हों, आम नहीं. तर्कशास्त्र का विद्यार्थी होने के कारण मैंने मान लिया कि लडका-लडकी का प्यार होने के लिए वर्जित फल खाना जरूरी है.
जैसे परीक्षा में चोरी करना वर्जित है, वैसे चोरी किया हुआ फल भी वर्जित है. इसीलिए मेरे लिए चुराए हुए आम ने वही काम किया जो एक सेब ने आदम और हौआ के लिए किया था. मन में पाप के बीज बोने का.
चोरी करना पाप है, यह तो समझ में आता है. लेकिन प्यार करना क्यों पाप है यह बात मैं आज तक नहीं समझ पाया.
जिस धर्म ग्रंथ में मैंने सेब की खूबियों के बारे में पढा था उसी पुस्तक में यह भी लिखा था कि मनुष्य का पहला धर्म है अपने पडोसी को प्यार करना. मैंने पडोसी होने के धर्म को बखूबी निभाने में कोई कसर नहीं छोडी.
धर्म ग्रंथ में यह भी जोर देकर कहा गया है कि अपने से कमजोर व्यक्ति को आपके प्यार का पहला हकदार मानना चाहिए. सो मैंने पडोस के हट्टे-कट्ठे हम उम्र लडकों के बजाए, पडोस की कमजोर, कमसिन कन्याओं से मेल जोल बढाने के प्रयास शुरू कर दिए.
मैंने पाया कि मेरे क्लास की सबसे सुन्दर कन्या पढने में सबसे कमजोर थी. भूगोल में गोल और गणित में शून्य थी. मैंने दोनों विषयों में उसे नि:शुल्क ट्यूशन देना शुरू कर दिया.
भूगोल समझने तथा समझाने के लिए हमारे पास रमणीय स्थलों की कोई कमी न थी. पास ही एक नदी थी, एक छोटी पहाडी थी, खेत-खलिहान थे और ऐसे निर्जन स्थल थे जहां का पता सिर्फ़ मुझे ही मालूम था.
जहां तक गणित का सवाल था, हम 7-7 सबसे नजर चुराकर 9-2-11 होना बखूबी सीख गए थे. लेकिन प्रेम के ढाई अक्षर को हम पूरी तरह से सीख पाते इससे पहले उस कोमल कन्या के निष्ठुर पिता का तबादला हो गया और वह अपने बाबुल के साथ दूसरे शहर चली गई. बुलबुल के इस प्रकार अचानक उड जाने से मेरे मन का पंछी उदास और अकेला हो गया.
आजकल भी मैं आम खाता हूं, मगर खरीद कर. इसीलिए शायद चुराए हुए आम का असर नहीं मिल पाता.