Wednesday, September 28, 2011

मोदी की निगाह में है दिल्ली


लोक सभा के आम चुनाव में अभी तीन साल और बाकी हैं. लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभी से इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं. बिहार के विधान सभा चुनाव में सहयोगी जनता दल (यू) के नेता और मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने उन्हें चुनाव प्रचार से दूर रखा था. वजह थी मोदी की मुसलमान विरोधी कुप्रतिष्ठा. मोदी यह भली भांति जानते हैं कि केवल रतन टाटा, मुकेश और अनिल अंबाणी बंधु जैसे उद्योगपतियों के समर्थन प्रस्ताव से उन्हें दिल्ली की राज गद्दी नहीं मिलेगी. इसके लिए उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की तरह धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहनना होगा.

गुजरात के २००२ में हुए नरसंहार में उनकी भूमिका के कारण विश्व हिन्दु परिषद के नेतृत्त्व ने मोदी को ’हिन्दु हृदय सम्राट’ की पदवी से विभूषित किया था. उनकी प्रखर हिन्दुत्त्ववादी छवि तथा गुजरात मतदाताओं के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण ही मोदी दो दफ़ा मुख्यमंत्री चुने गए. विधान सभा चुनावों में मोदी ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति ’मियां मुशर्रफ़’ के भारत विरोधी रवैये तथा सोनिया गांधी के नेतृत्त्व में कांग्रेस की मुसलमानों को खुश करने वाली नीतियों को ललकारा और ऐसा माहौल खड़ा किया कि जैसे यह एक भारत-पाक युद्ध हो, न कि राज्य विधान सभा के चुनाव. पिछले दस साल से लगातार ’हिन्दु हृदय सम्राट’ का मुकुट पहन कर चलने वाले मोदी के लिए अब रातों रात धर्मनिरपेक्ष एवं सर्वमान्य नेता के रूप में अपनी पहचान बना पाना थोड़ा मुश्किल ही नजर आता है.

उच्चतम न्यायालय ने अब जब २००२ के नरसंहार में उनकी भूमिका की जांच अहमदाबाद के मेजिस्ट्रेट की अदालत को सुपुर्द करने का आदेश दिया है तब मोदी के लिए अपनी मुसलमान विरोधी छवि को मिटा कर एक धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में प्रतिस्थापित करना बहुत बड़ी चुनौती है. हिटलर के प्रचार मंत्री गोबेल्स से बोध पाठ सीखे मोदी ने एक झूठ को सौ बार सच के रूप में दोहरा कर सफ़ेद झूठ को सच के रूप में प्रस्थापित करने का प्रयास शुरू कर दिया है. इसका सबसे पहला कदम उठाया उन्होंने अपने जन्म दिवस से शुरू किए गए तीन दिवसीय ’सद्भाव’ उपवास से. गुजरात विश्व विद्यालय के वातानुकूलित विशाल सभागृह में आयोजित उपवास समारोह में राज्य भर से हजारों की संख्या में ट्रक, बस तथा ट्रैक्टर से लोग लाए गए. उपवास के पहले दिन विशेष कर भारी संख्या में मुसलमान स्त्री-पुरुषों को लाया गया. इन्हें बुर्का तथा नमाज़ी टोपी पहन कर आने को कहा गया और मंच के सामने पहली कतारों में बैठाया गया ताकि टीवी कैमेरा इसका देश-विदेश में सीधा प्रसारण कर सकें.

इसी प्रकार, दक्षिण गुजरात से आदिवासी युवकों को इसाई पादरियों का चोगा तथा क्रोस पहना कर मंच पर बिठाया गया. इन तथा कथित इसाई पादरियों से जब एक अंग्रेज़ी अखबार के पत्रकार ने अंग्रेज़ी में सवाल पूछे तब जा कर इस बात का पर्दाफ़ाश हुआ कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी के आयोजकों ने सिर्फ़ मंच पर दिखावे के लिए ये वेशभूषा पहनाई थी. सद्बावना उपवास एक नाटक मात्र था यह तथ्य इसी प्रकार की एक और हास्यास्पद किस्से से जाहिर हो गई जब दर्शकों ने मंच पर विराजमान एक शक्स को, जो अरब शेख के कफ़्तान और कैफ़िए पहने था, अहमदाबाद के पूर्व उपायुक्त के रूप में पहचान लिया.

जहां एक ओर इस प्रकार के नाटकीय प्रदर्शन से मोदी यह बात साबित करने की नाकाम कोशिश करते नजर आए कि उन्हें सभी धर्म के लोगों का समर्थन प्राप्त है, वहीं मंच पर विराजमान भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली, लोक सभा में विपक्ष की नेता सुष्मा स्वराज, पंजाब के अकाली दल के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल तथा हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल द्वारा अपनी भूरी-भूरी प्रशंसा करा कर यह संदेश दिया कि उन्हें न केवल भाजपा के नेतृत्त्व का बल्कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दलों का भी समर्थन प्राप्त है. तामिल नाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने भी अपने दल के दो सांसदों को मोदी के सद्भावना उपवास कार्यक्रम में शामिल होने भेजा था.

उपवास के अंतिम दिन के भाषण ने मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री पद के दावेदार होने की अपनी बृहद आकांक्षा को यह कह कर जग जाहिर कर ही दिया कि वे अब अपना सर्वस्व देश की सेवा में अर्पित करना चाहते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि देश को यदि बड़े सपने देखने और उन्हें साकार होते हुए देखना है तो गुजरात के नक्शे कदम पर चलना होगा. उन्होंने दावा किया कि गुजरात ने देश के सामने सद्भावना, सुलह-शांति तथा सर्वांगी विकास की बेहतरीन मिसाल पेश की है.

लेकिन मोदी का यह दावा भी २००२ की हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों ने खोखला साबित कर दिया. "बिना न्याय के सद्भाव संभव नहीं" का नारा देकर इन पीडित लोगों ने मोदी के उपवास के दूसरे दिन अहमदाबाद के नरोड़ा पाटिया और गुलबर्ग सोसायटी में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जिनको पुलिस ने लाठी चला कर और गिरफ़्तार कर प्रदर्शन स्थल से हटा दिया. प्रदर्शन में शामिल होने जा रहे दंगा पीड़ितों के वकील मुकुल सिंहा तथा सुप्रसिद्ध नृत्यांगना एवं कर्मशील सामाजिक कार्यकर्ता मल्लिका साराभाई को भी पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया.

प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष के सर्वमान्य उम्मीदवार होने का उनका दावा भी न केवल राजग के नेता नितीश कुमार ने बल्कि भाजपा के आला कमान ने भी यह कह कर झूठा साबित कर दिया कि अब तक इस बारे में किसी भी व्यक्ति का नाम तय नहीं किया गया है. हालांकि लाल कृष्ण आडवाणी ने मोदी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के समर्थन में यह कह कर कि वे एक सक्षम नेता हैं पुष्टि अवश्य की, मगर लोक सभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने उपवास मंच से मोदी को अपनी कार्यक्षमता का लाभ केवल गुजरात तक सीमित रखने की सलाह दी.

सर्वांगी विकास का मोदी द्वारा प्रसारित तथा प्रचारित गुजरात मोडल को न केवल विपक्षी कांग्रेस के नेताओं ने चुनौती दी है बल्कि उन्हीं के दल भाजपा के विधायक कनुभाई कलसारिया तथा मोदी मंत्रीमंडल में रह चुके गोर्धनभाई झडफिया ने भी दी है. सद्बावना उपवास को झूठा तथा मोदी सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर करने राज्य कांग्रेस के  अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया, पूर्व अध्यक्ष शंकरसिंह वाघेला तथा विधान सभा में विपक्ष के नेता शक्तिसिंह गोहिल ने साबरमती आश्रम के सामने फुटपाथ पर तीन दिन के समानान्तर उपवास पर बैठे. इससे पहले गुजरात से कांग्रेस के सांसदों के एक प्रतिनिधि मन्डल ने राष्ट्रपति को एक ज्ञापन पत्र देकर मोदी सरकार द्वारा कुछ गिने चुने औद्योगिक घरानों को पानी के मोल करोड़ों की जमीन देने में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों की लोकपाल द्वारा जांच करने की मांग उठाई.

खेती की जमीन को औद्योगिक घरानों को सस्ते में बांटे जाने के सवाल पर भाजपा के विधायक कनुभाई कलसारिया ने हाल ही में भावनगर से जामनगर तक की सायकल यात्रा की जिसमें समुद्र किनारे बसे सैंकड़ों किसानों ने भाग लिया. सरकार द्वारा उपजाऊ जमीन को औद्योगिकरण के लिए दिए जाने के सवाल पर दक्षिण गुजरात से लेकर कच्छ तक के १६०० किलो मीटर समुद्री तट के गांवों में जगह-जगह आंदोलन चल रहे हैं जिसमें भाजपा के विधायक के अलावा ९४ वर्षीय गांधीवादी चुनीभाई वैद्य सक्रीय रूप से जुड़े हैं. दिल्ली में जन लोकपाल की मांग को लेकर अनशन करने से पहले, अन्ना हजारे ने भी अपनी गुजरात यात्रा के दौरान यह घोषणा की थी कि वे खेती योग्य जमीन को उद्योगों को सौंपने के मसले पर अपना अगला आन्दोलन करेंगे. अन्ना हजारे की गुजरात दौरे के समय चुनीभाई वैद्य ही उनके स्थानिक यजमान थे. आगामी १ अक्तूबर से अन्ना हजारे और उनके सहयोगी फिर से गुजरात का दौरा करने वाले हैं जिस समय जमीन का मुद्दा एवं गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति का मामला उछलेगा.

गुजरात के राज्यपाल कमला बेनीवाल द्वारा उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश आर ए मेहता की नियुक्ति को मोदी सरकार ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी है. साथ ही अपने सद्बावना उपवास के तुरंत बाद अहमदाबाद में एक विशाल रैली का आयोजन कर मोदी ने राज्यपाल की वापसी की मांग भी उठाई. अब वे राज्य के सभी जिला मुख्यालयों में राज्यपाल हटाओ मांग को लेकर रैलियों का आयोजन करेंगे. याद रहे, राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर भाजपा ने संसद के दोनों सदनों की कार्रवाही को भी तीन दिन तक स्थगित किया था.

जहां एक ओर लोकायुक्त और उनकी सरकार के खिलाफ़ भ्रष्टाचार के मामले में मोदी घिरते हुए नज़र आ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर फ़र्ज़ी मुठभेड़ों की जांच कर रही उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल की रपट में मोदी के निकटस्थ पूर्व गृहमंत्री अमित शाह सहित ३० से अधिक पुलिस अधिकारियों  की संदिग्ध भूमिका का मामला भी गंभीर स्वरूप धारण कर सकता है जिससे मोदी सरकार चिंताजनक परिस्थिति में फ़ंस सकती है.

इस प्रकार दिल्ली की गद्दी पर नजर टिकाने से पहले मोदी को अपने ही राज्य गुजरात में उनकी बिगड़ती परिस्थिति को संभालना होगा.


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