अपने दस साल के कार्यकाल में पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्य में सद्बभावना का वातावरण बनाने के घोषित उद्देश्य से अपने ६१ वें जन्म दिवस, १७ सितम्बर, से तीन दिन का अनशन करने जा रहे हैं. यदि ऐसा अनशन उन्होंने गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस पर २७ फ़रवरी २००२ को हुए हमले के बाद किया होता कि जिसमें अयोध्या से लौट रहे ५९ कार सेवक आग में जल कर मर गए थे तो उसके बाद हुई जघन्य हिंसा में २,००० से ऊपर निर्दोष मुसलमान न मारे गए होते. उस समय तो उन्होंने पुलिस प्रशासन से कहा कि हिन्दुओं के गुस्से को प्रकट हो जाने दो, उन्हें मत रोको. राज्य की खूफ़िया पुलिस अधिकारियों के मना करने पर भी उन्होंने जली हुई लाशों को गोधरा से अहमदाबाद लाने से नहीं रोका. लाशों का जुलूस निकाला गया और साथ ही शहर की मुसलमान बस्तियों पर उन्मत्त दंगाइयों ने कहर बरपाना शुरू कर दिया.
तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, "मोदी अपना राजधर्म" भूल गए. मोदी सरकार में गृह मंत्री हरेन पंड्या ने नागरिक अधिकार संगठनों द्वारा नियुक्त जांच कमिशन के सामने कबूला कि सरकार ने जानबूझकर मुसलमानों पर हुई हिंसा को रोकने के कोई भी प्रयास नहीं किए. विधान सभा चुनाव घोषित हुए. हरेन पंड्याने मोदी के लिए एलिस ब्रिज विधान सभा सीट खाली करने से मना कर दिया. कुछ ही दिन बाद कुछ लोगों ने गोली मार कर हरेन पंड्या की दिन दहाडे हत्या कर दी. उन की लाश को देखने जब मोदी और तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी अस्पताल पहुंचे तो पंड्या समर्थकों ने नारे बाजी से उनका विरोध किया. मोदी ने तब भी उपवास नहीं किया.
विधान सभा चुनाव में सद्भावना और भाईचारे की बात के बदले मोदी ने पाकिस्तान-प्रेरित मुस्लिम आतंकवाद पर हिंदुओं को उत्तेजित करने वाले भाषण दिए. भाषणों मे पाकिस्तान के तानाशाह राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ और तुष्टिकरण की नीति अपनाने वाली कांग्रेस पर तीखे प्रहार करके मोदी ने ऐसा माहौल खड़ा कर दिया मानों ये विधान सभा चुनाव नहीं बल्कि हिंदुस्तान बनाम पाकिस्तान का युद्ध हो रहा हो. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बल पर मोदी भारी बहुमत से चुनाव जीत गए. सांप्रदायिक सद्भाव के लिए उपवास की बात तो दूर, मोदी ने सांप्रदायिक तनाव बढाने के ही प्रयास किए.
मोदी की चाटुकारिता कर अपना उल्लू सीधा करने वाले पुलिस अधिकारी इस कोशिश में लग गए कि कैसे भी मोदी की हिन्दु हृदय सम्राट प्रतिमा को मंडित किया जाए. इसी प्रयास के भागरूप शोहराबुद्दिन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी तथा मुम्बई की इशरत जहान की फ़र्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई. इन चाटुकार और आपराधिक मनोवृत्ति वाले पुलिस अधिकारियों को मलाईदार पदों पर नियुक्त किया गया.
पाप के घडे को एक दिन फूटना ही होता है. निष्पक्ष और कानून एवं संवैधानिक तरीके में विश्वास रखने वाले पुलिस अधिकारी रजनीश राय ने फ़र्ज़ी मुठभेड करने वाले भ्रष्ट और आपराधिक मानस वाले पुलिस अधिकारियों को गिरफ़्तार किया जो चार साल से ज्यादा समय से आज भी जेल के सीखचों के पीछे हैं. नगर मेजिस्ट्रेट एस पी तमांग ने, कि जिन्हें इशरत जहान की पुलिस मुठभेड की जांच की, पाया कि यह एक फ़र्जी मुठभेड़ थी. गुजरात उच्च न्यायालय ने इस की जांच के लिए एक विशेष अन्वेषण दल का गठन किया. इस विशेष दल के एक सदस्य सतीष वर्मा ने भी अपनी जांच में मेजिस्ट्रेट तमांग के नतीजे की पुष्टि ही की. फ़र्जी मुठभेड़ के मामले ने अब और एक नया मोड़ लिया जब शोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने केन्द्रीय अन्वेशन ब्यूरो (सीबीआई) से गुजरात के दो पूर्व राज्य पुलिस महानिदेशक, पीसी पान्डे तथा ओपी माथुर की गिरफ़्तारी की मांग की इस बिना पर कि वे जांच में बाधा पहुंचा रहे हैं. शोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी की फ़र्जी मुठभेड़ की जांच सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को सौंपी है. इसी मामले में गुजरात के गृहमंत्री अमित शाह को गिरफ़्तार किया गया था जिन्हे अदालत ने जमानत पर रिहा तो कर दिया लेकिन जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात में प्रवेश करने पर रोक लगा दी है.
इस बीच भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ट अधिकारी संजीव भट्ट ने उच्चतम न्यायालय में एक हलफ़नामा दिया जिसमें उन्होंने कहा कि २००२ गोधरा कांड की रात को मोदी ने मुख्य मंत्री आवास पर अधिकारियों की मीटिंग में हिन्दुओं को अपना आक्रोष प्रकट करने से न रोका जाए ऐसा निर्देश दिया. मोदी सरकार ने संजीव भट्ट को अपने ऊपरी अधिकारी की बात न मानने के आरोप में निलम्बित कर दिया. इसी प्रकार सरकार ने एक अन्य भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी राहुल शर्मा के खिलाफ़ गुप्त जानकारी को जाहिर करने के आरोप में कारण बताओ नोटिस दी. राहुल शर्मा ने सरकार द्वारा नियुक्त जांच कमिशन को एक सीडी सुपुर्द की थी जिसमें दंगो के समय पुलिस अधिकारियों, मोदी और उनके कई मंत्रियों के बीच हुई मोबाईल फोन पर बात के रेकोर्ड हैं.
अब जब सर्वोच्च न्यायालय ने २००२ के नरसंहार में मोदी के खिलाफ़ लगे आरोपों की सुनवाई मेट्रोपोलिटन मेजिस्ट्रेट की अदालत को करने के आदेश दिए हैं तो भारतीय जनता पार्टी के नेता इसे मोदी की जीत बतला रहे हैं और यह झूठा प्रचार कर रहे हैं कि उच्चतम न्यायालय ने मोदी को निर्दोष ठहराया है. उच्चतम न्यायालय का निर्देश फ़ौजदारी कानून प्रक्रिया के अनुरूप है जिसमें किसी भी आपराधिक मुकदमें की सुनवाई पहले सबसे निचली अदालत में ही की जाने का प्रावधान है. उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय सिर्फ़ निचली अदालतों के फ़ैसले पर पुनर्विचार करते हैं.
सर्वोच्च अदालत ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि मेट्रोपोलिटन मेजिस्ट्रेट २००२ के दंगे में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री की बेवा से उन सभी सबूतों और गवाहियों की जांच करे जो उनके पास हैं. सर्वोच्च अदालत ने उसके द्वारा नियुक्त स्पेशल इन्वेस्टिगेटिंग टीम तथा एमिकस क्यूरी की रपट को भी मेजिस्ट्रेट की अदालत में पेश करने के आदेश दिए हैं. इस के अलावा भारतीय पुलिस सेवा के संजीव भट्ट, राहुल शर्मा एवं रजनीश राय के हलफ़नामा को भी मेजिस्ट्रेट की अदालत जांच करेगी.
जहां एक ओर उनकी २००२ दंगों में भूमिका को लेकर मोदी पर कानून का शिकंजा कसता दिखाई दे रहा है, वहीं दूसरी ओर उनके खिलाफ़ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सामने आ रहे हैं. गुजरात में टाटा सहित कई औद्योगिक घरानों को मिट्टी के मोल खेती की जमीन बांटने में एक लाख करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है यह आरोप विपक्ष के नेता लगा रहे हैं. भाजपा के ही विधायक कनुभाई कलसारिया भावनगर से जामनगर एक सायकल यात्रा पर केवल इस मुद्दे को आगे बढाने के लिए निकले हैं. कलसारिया के नेतृत्व में हुए जन आन्दोलन के कारण हाल ही में उद्योग घराने ’निरमा’ द्वारा खडे किए जा रहे सीमेन्ट प्लान्ट पर हो रहे निर्माण को बंद करना पड़ा. कलसारिया ने भी लोकायुक्त द्वारा मोदी सरकार के खिलाफ़ भ्रष्टाचार की जांच कि मांग की है.
गुजरात में २००३ से लोकायुक्त पद खाली है. मोदी ने उच्च न्यायालय और राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त के लिए सुझाए हर नाम का लगातार विरोध किया है. जब मोदी सरकार लोकायुक्त की नियुक्ती में मुख्यमंत्री का अधिकार हो इस उद्देश्य अध्यादेश लाना चाहती थी तो राज्यपाल ने उसपर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया और तत्काल उच्चन्यायालय के सेवा निवृत्त न्यायाधीश आर ए मेहता को लोकायुक्त नियुक्त कर दिया. दूसरे ही दिन मोदी सरकार ने लोकायुक्त के कार्यालय पर ताला लगा दिया और उनकी नियुक्ती को उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी. उच्च न्यायालय ने इस मामले में राज्यपाल को प्रतिवादी बनाने से इनकार कर दिया. लोकायुक्ति की नियुक्ती के मुद्दे को लेकर भाजपा ने संसद के दोनों सदनों की कार्रवाही तीन दिन तक ठप्प कर दी थी. जहां भाजपा नेताओं ने राज्यपाल पर तीखे प्रहार किए, वहीं मोदी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिख कर न्यायाधीश मेहता के खिलाफ़ सरकार के प्रति द्वेषपूर्ण भावना रखने का आरोप लगाया. उच्च न्यायालय ने इस पर मोदी सरकार से यह खुलासा मांगा कि मुख्य मंत्री का प्रधान मंत्री के नाम पत्र की नकल अखबारों तक कैसे पहुंची.
लोकायुक्त की नियुक्ती को लेकर जहां मोदी को न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली, वहीं सर्वोच्च अदालत ने भी मोदी के खिलाफ़ आरोपों पर मेजिस्ट्रेट की अदालत में कानूनी कार्रवाही करने की प्रक्रिया को गतिमान कर दिया. अपने फ़ैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहीं भी यह नहीं कहा कि ये आरोप झूठे हैं. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला आने के मिनटों में ही भाजपा के नेताओं ने मोदी निर्दोष हैं इस उद्देश्य के एसएमएस मोबाईल ग्राहकों को भेजने शुरू कर दिए. फ़ैसले पर तीन दिन चुप्पी साधने के बाद मोदी ने अचानक घोषणा कर दी कि वे राज्य में सद्भावना का वातावरण बनाने हेतु १७ सितम्बर से तीन दिन का अनशन करेंगे. इस अनशन के लिए गुजरात विश्वविद्यालय का कन्वेन्शन हॊल खाली करवा दिया गया, उसमें क्लोस सर्किट टेलिविज़न कैमेरा लगा दिए गए और २,००० सुरक्षा कर्मी नियुक्त कर दिए गए.
मोदी ने अनशन की घोषणा गुजरात की जनता के नाम एक खुले पत्र में की जिसमें उन्होंने कहा कि सर्वोच्च अदालत ने अब तक चल रहे विवादों का अंत ला दिया और उन सभी लोगों को झूठा साबित कर दिया जो गुजरात की छह करोड़ जनता को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं. इस पत्र की भाषा कि जिसमें मोदी ने अपने आप पर लगे आरोपों को गुजरात की जनता पर आरोप के रूप में जतलाने की कोशिश की है, आपातकाल में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देव कान्त बरुआ के इस बहु चर्चित बयान की बू आती है जिसमें उन्होंने कहा था कि "इन्दीरा ही भारत है और भारत ही इन्दीरा है".
मोदी के अनशन को एक ढोंग बता कर और उनके झूठ तथा भ्रष्टाचार का ’पर्दाफाश’ करने के लिए राज्य कांग्रेस के नेता शंकर सिंह वाघेला, शक्तिसिंह गोहिल तथा अर्जुन मोढवाडीया १७ सितम्बर से ही साबरमती आश्रम प्रांगण में तीन दिन का अनशन कर रहे हैं. हाल ही में मुसलमानों ने रमज़ान के लिए और जैन ने पर्यूषण के पर्व पर उपवास रखे थे जिससे समाज में सद्बावना बढी थी. अब देखना है कि दो राजनैतिक विरोधियों के इन उपवास से क्या होता है.
No comments:
Post a Comment