Friday, September 08, 2006

जब आम ने सेब का काम किया

मैंने कभी सेब नहीं खाया था, फिर भी मुझे लडके-लडकी वाला प्यार हो गया.
हमारे गांव में सेब मिलता ही नहीं था. हां, केला, पपीता, कटहल, अमरूद, बेर, चीकू, इमली प्रचूर मात्रा में फलते-मिलते थे.
मुझे जहां तक याद है, जिस दिन मुझे लडके-लडकी वाला प्यार पहली-पहली बार हुआ, उस दिन मैंने पडोसी के बगीचे से आम चुरा कर खाए थे और इस कारण शाम को मां से चार-पांच थप्पड भी खाए थे.
मैंने उस लडकी को भी चुराए हुए आमों में से एक यह कह कर दिया था कि यदि वह मेरे पास वाली सीट पर बैठे तो मैं उसे रोज आम दिया करुंगा.
वह खिल-खिल कर हंस दी और अपने दांतों बीच आम फंसा कर भाग खडी हुई. बस, उसी दिन मुझे मेरा पहला-पहला प्यार मिला. कच्चे आम की तरह कुछ खट्टा, कुछ मीठा.
बरसों बाद जब मैंने आदम और हौआ की कहानी पढी तब जा कर पता चला कि सेब एक वर्जित फल है, जिसे खाना पाप है, क्योंकि इसे खाने से लडका-लडकी अपनी मासूमियत खो देते हैं और उन्हें प्यार हो जाता है.
आदम और हौआ के जमाने में पडोसियों के बगीचे में शायद सेब ही फलते हों, आम नहीं. तर्कशास्त्र का विद्यार्थी होने के कारण मैंने मान लिया कि लडका-लडकी का प्यार होने के लिए वर्जित फल खाना जरूरी है.
जैसे परीक्षा में चोरी करना वर्जित है, वैसे चोरी किया हुआ फल भी वर्जित है. इसीलिए मेरे लिए चुराए हुए आम ने वही काम किया जो एक सेब ने आदम और हौआ के लिए किया था. मन में पाप के बीज बोने का.
चोरी करना पाप है, यह तो समझ में आता है. लेकिन प्यार करना क्यों पाप है यह बात मैं आज तक नहीं समझ पाया.
जिस धर्म ग्रंथ में मैंने सेब की खूबियों के बारे में पढा था उसी पुस्तक में यह भी लिखा था कि मनुष्य का पहला धर्म है अपने पडोसी को प्यार करना. मैंने पडोसी होने के धर्म को बखूबी निभाने में कोई कसर नहीं छोडी.
धर्म ग्रंथ में यह भी जोर देकर कहा गया है कि अपने से कमजोर व्यक्ति को आपके प्यार का पहला हकदार मानना चाहिए. सो मैंने पडोस के हट्टे-कट्ठे हम उम्र लडकों के बजाए, पडोस की कमजोर, कमसिन कन्याओं से मेल जोल बढाने के प्रयास शुरू कर दिए.
मैंने पाया कि मेरे क्लास की सबसे सुन्दर कन्या पढने में सबसे कमजोर थी. भूगोल में गोल और गणित में शून्य थी. मैंने दोनों विषयों में उसे नि:शुल्क ट्यूशन देना शुरू कर दिया.
भूगोल समझने तथा समझाने के लिए हमारे पास रमणीय स्थलों की कोई कमी न थी. पास ही एक नदी थी, एक छोटी पहाडी थी, खेत-खलिहान थे और ऐसे निर्जन स्थल थे जहां का पता सिर्फ़ मुझे ही मालूम था.
जहां तक गणित का सवाल था, हम 7-7 सबसे नजर चुराकर 9-2-11 होना बखूबी सीख गए थे. लेकिन प्रेम के ढाई अक्षर को हम पूरी तरह से सीख पाते इससे पहले उस कोमल कन्या के निष्ठुर पिता का तबादला हो गया और वह अपने बाबुल के साथ दूसरे शहर चली गई. बुलबुल के इस प्रकार अचानक उड जाने से मेरे मन का पंछी उदास और अकेला हो गया.
आजकल भी मैं आम खाता हूं, मगर खरीद कर. इसीलिए शायद चुराए हुए आम का असर नहीं मिल पाता.

11 comments:

रवि रतलामी said...

...लेकिन प्यार करना क्यों पाप है यह बात मैं आज तक नहीं समझ पाया...

कौन कहता है कि प्यार करना पाप है. प्यार करते पकड़े जाना पाप है!

Sunil Deepak said...

वो ज़माने और थे जब खाली एक आम के चक्कर में आप भोली भाली कन्याओं को भूगोल सीखाने के बहाने प्रेम चक्कर लगवाते थे. आज कल की कन्याएँ होतीं तो आम सेब सब भुलवा देतीं!

Ashish Shrivastava said...

अभी तक कंहा थे आप ? मै अभी तक चुराये हुये अमरूद कन्याओ मे बांट देता था, कुछ नही हुआ ! आप पहले मिल जाते तो आम बांटता ! अब तक कंवारा तो नही रहता !

Udan Tashtari said...

:) बहुत सही.

Sagar Chand Nahar said...

सही कहते हैं रवि रतलामी भाई साहब, एक बार यह पाप हमसे भी हो गया था, यानि हम भी पकड़े गये थे।

Nachiketa Desai said...

रवि रतलामी जी, रतलामी सेव भी वो काम कर सकता है, जो मेरे लिए चुराए हुए आम ने किया. एक पैकेट भिजवा दीजिए मुझे, मैं ही उसका उपयोग कर लूं.

Nachiketa Desai said...

सुनिलजी, कभी बनारसी लंगडा आम दे कर देखिए. आपका भी काम हो जाएगा.

Laxmi said...

बढ़िया लिखा है; मज़ा आगया। और क्यों न हो आपके नामारासी को तो स्वय यमराज ने वर दिया था। हो सकता है एक वर लेखनी की कुशलता का हो जो आप को भी मिल गया हो।

Sujatha said...

Sweetest are, indeed, the stolen kisses...oops...did i mean apples...or mangoes...does it matter? Your namesake, Nachiketa, the bengali singer says, "Sankirna moner manush jara tarai to bhalobashe ek baar, jaar mon joto bodo, joto thake abiroto tarai to bhalobashe bar-bar" Do I make sense?

Keep loving, and stealing...

Suji

Unknown said...

वहुत शानदार लेखन सरजी
आम के माध्यम से आपने कितना कुछ कह डाला
वैसे मेरे घर में आम और अमरुद के पेड़ हैं मगर ससुरा कभी मौका ही नहीं मिला

Anuradha said...

अच्छी है ... न जाने आम के नाम पर क्या क्या करते है लोग