Tuesday, September 20, 2011

उपवास की नौटंकी: दिल्ली अभी दूर है


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी बचपन में नौटंकी में अभिनय किया करते थे. वे न केवल अभिनय करने में माहीर हैं बल्कि उन्हें दर्शकों का मनोरंजन कैसे किया जाए इस बात का भी बखूबी अंदाज़ है. उन्हें किस मौके पर कैसी पटकथा लिखी जाए और कौन से डायलोग पर दर्शक तालियां बजाएंगे इस बात का भी सटीक पता है. गुजरात का राजनैतिक रंगमंच इस बात का गवाह है.

भारतीय राजनीति में कई अभिनेता नेता तो बन गए मगर आन्ध्र प्रदेश के एनटी रामाराव और तमिल नाडु के एमजी रामचंद्रन तथा जयललिता को छोड़ कर कोई भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया. अब यदि नरेन्द्र मोदी का त्रिअंकीय नाटक ’सद्बाव उपवास’ - समभाव के साथ-साथ सर्वांगी विकास -  २०१४ के आम चुनाव में ’हिट’ हो जाता है तो गांव की रामलीला से अपने अभिनय की शुरुआत करने वाले नेता का दिल्ली के सिंहासन पर बैठने का सपना साकार हो सकता है. हालांकि, इस महानाटक में खलनायक की भूमिका उनकी ही भारतीय जनता पार्टी तथा सहयोगी दलों के कई दिग्गज नेता निभा सकते हैं.  
   
अपने इकसठवें जन्म दिवस, १७ सितम्बर, से तीन दिन का उपवास कर मोदी ने यह साबित करने का प्रयास किया कि देश में उनके अलावा कोई और राजनेता ऐसा नहीं है जो सर्वधर्म समभाव के साथ-साथ सर्वांगी विकास का रास्ता दिखा सके. इस प्रचार प्रयास के पीछे उन्होंने सरकारी तिजोरी से करोड़ों रुपए खर्च किए. बसों, ट्रकों, ट्रैक्टर, टेम्पो से लाद कर गुजरात के कोने-कोने से लोग जुटाए गए. गोधरा कांड के बाद हुए नरसंहार के बाद ’हिन्दु हृदय सम्राट’ का खिताब पाने वाले मोदी ने टोपी पहने नमाज़ियों और बुर्का पहनी औरतों को अनशन स्थल पर भारी संख्या में लाने का इंतजाम किया. उन्हें गुजरात विश्वविद्यालय के वातानुकूलित सभागृह में अगली कतारों में बिठाया. मंच पर सभी समुदायों के धर्मगुरुओं को स्थान दिया गया. अपने साथ की कुर्सियों पर भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी तथा राजनाथ सिंह के अलावा राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली और भाजपा के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद को बिठाया. पंजाब और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री परकाश सिंह बादल तथा प्रेम कुमार धूमल को भी मंच पर स्थान दिया गया.  

भारतीय दर्शकों के लिए सद्भाव उपवास का संदेश था - मोदी केवल गुजरात की छह करोड़ जनता के ही नहीं, पूरे देश के सर्वमान्य नेता हैं और देश को यदि प्रगति करनी है तो ’गुजरात मोडल’ पर चलना होगा. सद्भाव उपवास में जहां मोदी ने अपने हिन्दुत्ववादी चेहरे पर धर्मनिरपेक्ष नेता का मुखौटा पहना, वहीं हर दो साल में एक बार आयोजित ’वाइब्रन्ट गुजरात’ महामेले में उन्होंने एक मंच पर रतन टाटा, मुकेश और अनिल अंबानी बंधु, शशी और रवि रुइआ बंधु तथा एक दर्जन से अधिक उद्योगपतियों को इकठ्ठा कर ’मोदी ही प्रधानमंत्री बनने योग्य नेता हैं’ का नारा लगवाया था. 

महानाटक में जब एक साथ सैंकडों पात्र अभिनय करते हों तो पटकथा तथा संवाद बोलने में गलतियों का हो जाना सामान्य बात है. जिस तरह छोटे कस्बों में दर्शकों को रामलीला में हनुमान का अभिनय करने वाले बीड़ी सुलगाते हुए दिख जाते हैं उसी तरह सद्भाव उपवास में मंच पर अरब शेख की वेश भूषा में एक व्यक्ति नज़र आए जिन्हें दर्शकों ने तुरन्त पहचान लिया कि वे कोई अरब देश से आए मेहमान नहीं बल्कि अहमदाबाद महानगर पालिका के पूर्व उप आयुक्त ज़ेड ए साचा हैं. स्वयं को अल्पसंख्यक समुदाय के बीच लोकप्रिय साबित करने के लिए मोदी ने राज्य भर से सैंकड़ों की संख्या में मुसलमान नर, नारी बुलाए थे जिन्हें नमाज़ी टोपी और बुर्का पहन कर आने को कहा गया था. जहां हिन्दु संप्रदाय के कई धर्मगुरुओं ने मोदी को अलग-अलग प्रकार की पगडियां पहना कर नवाज़ा, वहीं पीराना बाबा के नाम से प्रख्यात मौलाना हुसैन ने जब उन्हें टोपी पहनानी चाही तो मोदी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया. इसे पीराना बाबा ने अपनी नहीं बल्कि इस्लाम की बेइज्जती कहा. 

सद्भावना उपवास सिर्फ़ एक नाटक है यह बात २००२ में हुए नरसंहार में जो मारे गए उनके परिवार के सदस्यों ने नरोड़ा पाटिया तथा गुलमर्ग सोसायटी में ’न्याय के बगैर सद्भाव कैसा’ के नारे के साथ किए गए प्रदर्शन द्वारा उठाई. नरोडा पाटिया में एक ही दिन में एक सौ से अधिक लोगों को काट कर या जला कर मार दिया गया और गुलबर्ग सोसायटी में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री सहित साठ लोगों को मार दिया गया था. नरोड़ा पाटिया में दंगा पीड़ित महिलाओं द्वारा आयोजित प्रदर्शन में शामिल होने जा रही प्रसिद्ध समाज कर्मी मल्लिका साराभाई तथा वरिष्ट अभिवक्ता मुकुल सिंहा को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया. 

मुसलमानों को भारी संख्या में उपवास स्थल पर प्रमुख स्थान दिए जाने से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा विश्व हिन्दु परिषद के नेता भी मोदी की ’मुस्लिम तुष्टीकरण’ राजनीति से नाराज़ हैं. शिवसेना अध्यक्ष बाला साहेब ठाकरे ने भी मोदी के उपवास स्थल पर ’अल्लाह ओ अकबर’ के नारे लगने पर आपत्ति प्रकट कर चेतावनी दी है कि कहीं इस कारण ’हर हर महादेव’ की गूंज दब न जाए. शिवसेना के मुखपत्र ’सामना’ में लिखे संपादकीय में ठाकरे ने मोदी को याद दिलाया कि तीव्र हिन्दुत्व की नीति के कारण ही उन्हें गुजरात में बहुमत प्राप्त हुआ था. 

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहभागी अकाली दल तथा जयललिता की एआईएडीएमके ने जहां मोदी की सद्भावना उपवास का समर्थन किया, वहीं जनता दल (य़ू) ने इस कार्यक्रम में शामिल न हो कर इसका परोक्ष रूप से विरोध किया. बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए राजग का सर्व मान्य उम्मीदवार मानने से इनकार कर दिया. 

सद्भाव उपवास की समाप्ति पर मोदी ने ऐलान किया कि वे अब गुजरात के सभी जिलों में ’सद्भाव के साथ सर्वांगी विकास’ के लिए एक-एक दिन का उपवास करेंगे. महानाटक का रूपांतरण नुक्कड़ नाटक में होगा. इस बीच, त्रिदिवसीय उपवास में हुए सरकारी खर्च, जो लगभग एक सौ करोड़ रुपया आंका जा रहा है, की वसूली मोदी या राज्य भाजपा से की जाए ऐसी मांग गुजरात उच्च न्यायालय में एक जन हित याचिका के द्वारा की गई है. 

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