Wednesday, June 18, 2014

मेरी नानी

मेरी नानी मालती देवी चौधुरी शेरनी थी. उडीसा के गरीब आदिवासी उन्हें "मां" कहकर बुलाते थे. उन्होंने उडीसा में जन आंदोलन चला कर गुती प्रथा को समाप्त करवाया. गुती प्रथा के तहत गरीब आदिवासी साहूकारों की पीढी दर पीढी गुलामी करने को मजबूर थे. मेरे नाना उडीसा के मुख्यमंत्री थे और नानी आदिवासियों की नेता. 

एक बार आंदोलनकारी आदिवासी हजारों की संख्या में तीर-क्मान ले कर जंगल में निकल पड़े. सामने बन्दूकों से लैस पुलिस उन्हें रोकने आई. वातावरण तंग हो गया. कभी भी तीर और गोली चल सकती थी. नानी उसी इलाके में गांव-गांव पैदल घूम रही थी. उन्हें खबर लगी तो घटना स्थल पर पहुंच गई. आदिवासियों और पुलिस के बीच दीवार बन के खड़ी हो गई. आदिवासियों की मां को, जो मुख्यमंत्री की पत्नी भी थी, आदिवासियों के बीच से निकल कर आगे बढते देख, पुलिस सकते में आ गयी और वापस लौट गई.

भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान उन्हें जेल हुई. १९४६ में जेल से छूटने के बाद उन्होंने अपने गहने बेच कर अनुगुल में जमीन खरीदी और वहां आदिवासी और दलित बच्चों के लिए आश्रम विद्यालय खोला. बच्चे और शिक्षक खेती और खादी के काम के साथ पढाई करते. वहां से पढे छात्र-छात्राएं आगे चल कर शिक्षक और समाज सेवक बने.

एक बार जब मैं पांचवी या छठवीं कक्षा में पढता था तो गर्मियों की छुट्टी में बनारस से नानी के पास जाने के लिए निकला. कलकत्ता से भुवनेश्वर तत्कालीन मुख्यमंत्री बीजु पटनायक के साथ उनके निजी हवाई जहाज से आया. हवाई यात्रा का मेरा यह पहला अनुभव था. बीजु पटनायक ने, जो खुद पायलट रह चुके थे, मुझे सह पायलट की सीट पर बैठाया और स्वयं पायलट की जगह ले ली और मुझे हवाई जहाज को ऊपर-नीचे, दाएं-बांए कैसे घूमाते हैं यह दिखाया.

भुवनेश्वर पहुंच कर मुझे अपने ड्राइवर के साथ न्यू मार्केट भेजा जहां से मुझे मेरी मन पसंद के दो खिलौने - एक चाबी से चलने वाला बन्दर और दूसरा बैटरी से चलने वाली खिलौने की पिस्तौल जिसमें से आवाज के साथ-साथ रंग बिरंगी रोशनी निकलती थी.

जब मैं नानी के आश्रम अनुगुल पहुंचा तो मेरे खिलौने देख कर वे गुस्से से आग बबूला हो गईं. "इतने रुपये से तो मेरे दो बच्चों के लिए महिने भर का खाना आ सकता है. तुम कैसे इतने मंहंगे खिलौने से खेल सकते हो?"

विरोध में नानी ने एक दिन खाना नहीं खाया. मैं बहुत गुस्सा हुआ और रोया. बाद में मुझे नानी के उस दिन के व्यवहार का मतलब समझ में आया और आदिवासी बच्चों के सामने मैं ने जो खिलौनों का गर्व के साथ प्रदर्शन किया था उस पर भारी शर्म महसूस हुई.

काशी कथा

काशी स्टेशन के पास दो मोहल्ले हैं. राजघाट और प्रह्लादघाट. आठ साल से अठ्ठाईस साल की उम्र तक मैं यहीं पला-बढा. खेला-कूदा, गंगा और वरुणा नदी में तैरा. हम उम्र दोस्तों के साथ मार-पीट भी की. वरुणा और गंगा के संगम पर बसे राजघाट बेसन्ट स्कूल में दूसरे दर्जे से ग्यारहवीं तक पढ़ा.
प्रह्लादघाट के कई पंडा-पुरोहित मेरे दोस्त थे. उन्हें बचपन से ही जजमानी संभालना सिखाया जाता था. जिनके कोई खानदानी पंडे-पुरोहित नहीं होते थे ऐसे काशी यात्रियों को ट्रेन से उतरते ही जजमान बनाने की होड़ लगती थी. क्रिया-कर्म के सभी चोंचले उन्हें जन्म घुट्टी के साथ ही पिलाई गई थी.
मुन्नु गुरु, रामा गुरु, चुनमुन गुरु, ढुलमुल गुरु - सब के सब गुरु. तीसरी चौथी तक के पढे. अखबार पढ़ भर लेते थे, वेद पुराण से दूर का भी नाता नहीं. हां, कर्म-कान्ड से संबंधित श्लोक और मंत्र, अगड़म-बगड़म ऐसे बोलते थे जैसे इनका अर्थ और महत्व सिर्फ़ उन्हीं को पता है. जजमान चुंधिया जाते थे और खुशी-खुशी अपनी गांठ ढीली कर देते थे.
पंडों के बीच जजमानी के इलाके बंटे हुए थे. किसी के हिस्से सरगूजा तो किसी के भाग में उड़ीसा. जजमानी की ’जमीनदारी’ को लेकर आपस में कोई झगड़ा नहीं. साठ के दशक तक प्रह्लादघाट के सभी पंडे दशास्वमेध घाट और विश्वनाथ गली के पंडों को जजमान से मिले दान का चवन्नी हिस्सा दिया करते थे. पंडों के राजा हुआ करते थे अंजनीनंदन मिश्र.
प्रह्लादघाट के पंडों ने अपनी यूनियन बना ली और मेरे स्कूल के सहपाठी निशिराज मिश्र के पिता नेता चुने गए. एक दिन सारे पंडों ने फैसला किया कि कोई भी अब दशास्वमेध घाट और विश्वनाथ गली के पंडों को चवन्नी हिस्सा नहीं देगा.
इस बगावत को दबाने का जिम्मा अंजनीनंदन मिश्र को सौंपा गया. एक दिन प्रह्लादघाट की मुख्य सड़क पर एक पान की दुकान के सामने निशिराज मिश्र के पिता की गोली मार कर हत्या कर दी गई. दिन दहाड़े की गई हत्या के बावजूद प्रह्लादघाट के पंडे डरे नहीं, झुके नहीं. समयान्तर में जजमानी से मिलने वाली आमदनी धीरे-धीरे कम होती गई. पुरोहित परिवारों की नई पीढी स्कूल कालेज जाने लगी, नौकरी पेशा करने लगी.
मेरे हम उम्र पंडे, बचपन के साथी, कई तो स्वर्ग सिधार गए और बाकी अपनी-अपनी गद्दी पर चिलम खींच खीच कर समय काट रहे हैं.
काशी की कई कहानियां हैं. फुर्सद और मूड़ बनने पर लिखूंगा.