Tuesday, August 29, 2006

इक्कीसवीं सदी के महामानव

[यह लेख प्रियंका गांधी तथा चंद्रबाबु नायडु को एक अंग्रेजी अखबार द्वारा इक्कीसवीं सदी के व्यक्ति घोषित करने पर लिखा गया]

"इक्कीसवीं शताब्दी का व्यक्ति कहलाने के लिए कौन सी खूबियाँ होनी जरूरी है? अगले साल मैं भी तो २५ वर्ष का हो जाउँगा. फिर यह खिताब मुझे क्यों नहीं मिलना चाहिए?"मोन्टू ने सुबह-सुबह जब यह सवाल दागा तो मैं सोचने को मजबूर हो गया. "आखिर मेरे बेटे में क्या कमी है कि उसे यह खिताब न दिया जाए? वह भी जवान है, वह भी कम्प्यूटर से दिन-रात चिपका रहता है, वह भी दिन में सुनहरे सपने देखता है. उसमें वे सभी खूबियाँ हैं जो एक इक्कीसवीं सदी के युवक में होनी चाहिए."सवेरे अखबार में प्रथम पृष्ट पर दो फोटो चिपकी हुई थीं, जिन्हें देख कर मेरी १४ वर्षीय बेटी के मुँह से बरबस निकल गया था - पापा देखो 'ब्यूटी एन्ड द बीस्ट'. तब तो मैंने उसे यह कह कर डाँट दिया था कि बडे लोगों के बारे में ऐसी बात नहीं करते.मगर जब मैंने नित्यकर्म निपटाते हुए इस बात पर गहन चिंतन किया तो लगा कि बिटिया ने बात तो ठीक ही कही थी. जिन दो हस्तियों की फोटो अखबार के पहले पन्ने पर लगी थीं उसका शीर्षक 'ब्यूटी एन्ड द बीस्ट' होता तो ज्यादा उपयुक्त होता. अखबार अंग्रेजी का था, सो अनुवाद करने की खटपट भी नहीं. इसे पढकर पाठक का मन पुलकित भी हो जाता.
लेकिन फोटो का विवरण बता रहा था कि ये तस्वीरें अगली सदी के महानुभावों की हैं. जिसे मेरी बेटी ब्यूटी बता रही थी वह वाकई मोनालिसा और सोफिया लॉरेन के सौंदर्य का संतुलित सम्मिश्रण लग रही थी. इटली के सुप्रसिद्ध चित्रकार की जगविख्यात कलाकृति एवं इटली की चिरयौवना फिल्म अभिनेत्री से जिसकी तुलना करने का मन हो जाए उसका संबंध भी कहीं न कहीं इटली से जरूर जुडा होना चाहिए.
तस्वीर के इटालियन कनेक्शन को सुलझाने की उधेडबुन में मैंने टूथपेस्ट को शेविंग क्रीम समझकक़्र दाढी पर लगा लिया. नाश्ता करते हुए मैंने आखिर अपने बेटे से उस तस्वीर वाली यौवना का परिचय पूछ ही लिया.
"अरे ! आप इसे नहीं जानते? अपने आपको देश का प्रथम परिवार कहलाने वाले खानदान की यह एक मात्र कुलदीपा है. आप किस दुनिया में रहते हैं,पापा?" मेरे एक मात्र कुलदीपक मोन्टू ने मेरे कमजोर सामान्य ज्ञान पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा.
"इसके नाम के पीछे भी राष्ट्रपिता के खानदान का नाम जुडा हुआ है. मगर बापू से इसका दूर का भी रिश्ता नहीं है. हाँ, बापू के नाम पर दुकानदारी करने वाले राजनेता 'नरो वा कुंजरो वा' की तरह इस बारे में चुप्पी बनाए रहते हैं, विशेषकर तब जब वे जनता के सामने वोट माँगने निकलते हैं," मोन्टू ने इस विस्मयकारी व्यक्तित्व को और भी अधिक रहस्यमय बनाते हुए कहा.
मुझे मोन्टू के सामान्य ज्ञान पर गर्व और अपनी अनभिज्ञता पर शर्म महसूस हुई. 'नरो वा कुंजरो वा' की उक्ति से तो मैं मोन्टू के संस्कृत ज्ञान से भी प्रभावित हो गया.
मगर दाढी बनाते समय जिस इटालियन कनेक्शन का ख्याल मेरे दिमाग में कौंधा था उसका हल निकाल पाना मोन्टू के भी बस की बात नहीं है. यह सोचकर मैंने अपनी उर्वरक बुद्धि का रौब जमाने के लिए मोन्टू से पूछा,"अच्छा, यह बूझो तो जानें कि तुम कितने अकलमंद हो. मोनालिसा, सोफिया लॉरेन और इस ललना में क्या साम्य है?"
"यह भी कोई सवाल हुआ? ये तीनों महिलाएँ सुबह नाश्ते में पिज्जा खाती हैं, दूध और जलेबी नहीं," मोन्टू तपाक से बोला.
मोन्टू के जवाब ने मुझे लाजवाब कर दिया. मैंने अपनी गंजी खोपडी पर हाथ फेरते हुए गहन चिंतन करने का अभिनय शुरू किया. मुझे इस प्रकार घेर पाने में सफल होने पर मोन्टू मुस्कुराया.
"अच्छा पापा, अब आप बताओ यह खिचडी दाढी वाला कौन है जिसे मुन्नी बीस्ट कह रही थी?" मोन्टू ने पहला सवाल फेंका. मैंने सवाल अनसुना कर दिया. मगर मोन्टू मुझे ऐसे कैसे जाने देता.
"एक संकेत देता हूँ. यह बम्बइया फिल्मों के खलनायक का चमचा-सा दिखने वाला दढियल, तेलुगु सिनेमा के अब तक के सर्वाधिक लोकप्रिय अभिनेता-राजनेता का दामाद है. और आजकल 'किंग मेकर' के रूप में पहचाना जाना पसंद करता है," मोन्टू ने मुझे चुनौती दी.
"देखो मोन्टू, मुझे न अभिनय में रुचि है न ही अभिनेता से नेता बने नायकों में ही कोई रुचि है. हाँ, बचपन में जरूर नौटंकी, सरकस देखे थे," मैंने मोन्टू से आँख चुराते हुए कहा. आज यह लडका मेरे सामान्य ज्ञान की परीक्षा लेकर ही मानेगा.
"ठीक है पापा, मैं कथा पुराणों से उदाहरण दे कर एक और हिंट देता हूँ. महाभारत में जैसे राज के लिए भाई-भाई लडे थे, आंध्र में ससुर-दामाद का द्वंद्व हुआ था. दामाद की जीत हुई तथा सास-ससुर को राजनीतिक वनवास लेना पडा," मोन्टू ने आँखें मटकाते हुए कहा.
"मोन्टू अब बस करो. यह मेरी उम्र नहीं है पहेलियाँ बूझने की. और सुनो, ये ब्यूट एन्ड बीस्ट जो भी हों, एक बात मैं बेशक कह सकता हूँ कि उन्होंने कभी अपने बाप से पहेलियाँ नहीं पूछी होंगी. इसीलिए तो तुम तुम रह गए और ये दोनों इक्कीसवीं सदी के व्यक्ति चुने गए," मैंने बहस पर पूर्णविराम लगाने के अंदाज में कहा और छाता उठाए घर से बाहर निकल गया.

2 comments:

अनूप शुक्ल said...

आज अफलातून भाई से आपके ब्लाग का लिंक मिला। बहुत खूब लिखते हैं आप। हिंदी में लिखना जारी रखें।
http://hindini.com/fursatiya
http://chitthacharcha.blogspot.com/

Nachiketa Desai said...

आप की सलाह मान ली. अब अंग्रेजी से ज्यादा हिंदी में लिखा करूंगा.