कृति वीरानी रसोई घर में पड़ोस के भैया जी के भैंस के तबेले से चुरा कर लाए गोबर के उपलों पर सास के लिए टमाटर का सूप बना रही थी. टमाटर की जगह मैग्गी का टोमेटो केचप इस्तेमाल कर रही थी. टमाटर तो एक सौ रुपये किलो मिल रहे थे. अब अगर टमाटर से रोज सूप बनाने लगे तो पति देव के लिए बियर कैसे आएगी? सो, केचप से ही काम चलाया जा रहा था.
पिछले पचास दिन से वीरानी परिवार शुद्ध शाकाहारी बन गया था. कृति ने पड़ोस के जैन परिवार की मंझली बहू से बिना प्याज, लहसून का प्रयोग किए एक से एक बढ़ कर स्वादिष्ट व्यंजन बनाने का गुर सीख लिया था. "मंझली बहू बिना प्याज का जो आमलेट बनाती है उसे कई मुनी और गुणी बहुत पसंद करते हैं," कृति ने अपनी सास को यह राज की बात बता दी थी.
वीरानी परिवार ने बहुत सोच समझ कर गैस का इस्तेमाल भी बंद कर दिया था. एक तो अच्छे दिन लाने के लिए सरकार ने गैस सिलिंडर के दाम बढ़ा दिए थे और फिर पाइपलाइन से घर घर मिलने वाला गैस भी देशभक्त कंपनियों ने दुगुने से भी ज्यादा महंगा कर दिया था. भाई शेयर होल्डर्स के भी तो अच्छे दिन आने चाहिए कि नहीं? पिछले चुनाव के समय मिस्टर वीरानी ने भी दो देशभक्त कंपनियों के एक - एक हजार शेयर ले लिए थे. जिस दिन चुनाव के नतीजे आए उसी दिन इन शेयर के भाव चार गुना बढ़ गए थे. मिस्टर वीरानी इस दिवाली की छुट्टियां ऑस्ट्रेलिया में मनाने का प्लान बना रहे हैं.
मिस्टर वीरानी का छोटा भाई, जिसे पहाड़ के गाँव में गायों और खेत खलिहान की देखभाल के लिए रख छोड़ा था, वह कई दिनों से भाभी जी के दर्शन करने आना चाह रहा है. बुलेट ट्रेन के शुरू होते ही आने का सोच रहा है. अभी तो जो एक मात्र पैसेंजर ट्रेन है उसका किराया तो हवाई जहाज से भी ज्यादा है. अब अगर भाई साहब उसे यहाँ हवाई जहाज से बुलाने का सोच बैठे तो बहुत मुश्किल हो जाएगी. बुलेट ट्रेन तो बस यूं पलक झपकते आ जाएगी.
ट्रेन से यात्रा तो मिस्टर वीरानी भी पसंद करते हैं. जब से गैस कंपनी ने मेट्रो ट्रेन शुरू कर दी तब से वे ऑफिस उसी से जाते आते हैं. हाँ साथ में एक छाता भी ले कर जाते हैं. यह बारिश भी इतनी बेशरम है कि मेट्रो की छत फाड़ कर रिम झिम के गीत सावन आए वाला जीतेंदर का गीत सुनाती रहती है. वैसे मिस्टर वीरानी को ट्रेन में रेन डांस करते लड़के लड़कियों को देखना अच्छा लगता है. ऑफिस तक का सफ़र यूं चुटकियों में तय हो जाता है.
इधर क्लाइमेट चेंज के बारे में भी लोग बहुत सचेत हो गए हैं. जो पहले स्कूटर या मोटर साइकिल से काम पर जाते थे वे अब पैदल, साइकिल या जिनको ऑफिस से सीजन पास का भत्ता मिलता है वो मेट्रो ट्रेन से यात्रा करने लगे हैं. पेट्रोल और डीजल की बचत हो जाती है, देश को अच्छे दिन जो देखने हैं.
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