हमारे मोहल्ले का एक कुकुर था. उसका नाम लोगों ने रखा था हिटलर. बहुत गुर्राता था और भौंकता था. दूसरे कुकुर का सीना चौदह इंच का था. वह अपना सीना फुला कर छप्पन इंच का कर लेता था. लेकिन था वह बड़ा डरपोक. अकेला बाहर न निकले जब तक साथ में आठ-दस लाठीधारी लोग न हों.
हिटलर सेठ धनीराम का चहेता था. कंजूस थे सो दूधवाले को पटाकर सारे मुहल्लेवालों के दूध में से कटोरा कटोरा निकाल कर हिटलर को पिलाते. दूधवाला सरकारी नल का पानी मिला कर भरपाई कर देता. हिटलर दिन रात धनीराम की छबीस मंजिली हवेली के तहखाने में पड़ा रहता.
कई बार सेठ का मोटू बेटा हिटलर को अपनी चमचमाती गाडी में शहर की सैर कराने ले जाता. मोटू को तेज रफ़्तार से गाडी चलाने का शौक था. एक बार उसकी गाडी से सड़क पर सोए कई पिल्ले कुचल कर मर गए. उस दिन हिटलर रोया, मगर दूध नहीं छोड़ा.
एक बार सैर करते वक्त हिटलर की नज़र पड़ोस की कमसिन कन्या पर पड़ी. उसे पहली नज़र में प्यार हो गया. थी तो वह हिटलर की बेटी की उम्र की. मगर प्यार में उम्र से क्या मतलब. सेठ से कह कर हिटलर ने उसपर चौबीस घंटे नज़र रखवानी शुरू की. जासूसी का काम शहर के कुख्यात शेयर दलाल को सौंपा गया. दलाल को सेठ लौंडपन से जानता था जब वह मोहल्ले की शाखा में डंडा भांजने आया करता था.
हिटलर की वैसे बचपन में ही शादी हो गई थी एक मासूम और धार्मिक कन्या से. लेकिन हिटलर था बड़ा मनचला. ब्रह्मचर्य व्रत का बहाना बना कर वह गाँव छोड़ शहर भाग आया. बस स्टैंड के पास ही चाय की दूकान को उसने अपना अड्डा बना लिया. चाय की दूकान थी, सो दूध और बिस्कुट मिल जाया करती थी.
चाय की दूकान पर कई प्रचारक भी आते थे. पूँछ हिला हिला कर, और तलुए चाट चाट कर हिटलर उनका विश्वासपात्र बन गया. चाय की दूकान छोड़ कर उनके साथ लग लिया. संघ का साथ मिल जाने के बाद तो हिटलर की दिन दुगुना, रात चौगुनि तरक्की होती गई.
सोमनाथ से अयोध्या, गांधीनगर से गोधरा, मथुरा से मुज़फ्फरनगर और अंत में बनारस में हिटलर से मोती नाम धारण कर बिना कत्था के पान पर खाली चूना लगाया और हथिया लिया हस्तिनापुर. मोती सेठ धनीराम के पिलाए दूध का क़र्ज़ भूला नहीं है, लोगों को पानी पिला पिला कर सेठ को मलाई पहुंचा रहा है.